गुरुवार, मार्च 04, 2010

शिवराज दूत हैं सुषमा?

सुषमा स्वराज ने अपने आपको मध्य प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर खुद ही बना दिया है। कायदे से तो उन्हें कर्नाटक का ब्रांड एबेसडर होना चाहिए जहां से वे सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड चुकी है और जहां की भाजपा सरकार सुषमा के मुंह बोले रेड्डी बंधुओं की दम पर चल रही है। सुषमा स्वराज और नरेंद्ग मोदी में कभी नहीं बनी यह तो सभी जानते हैं। इसकी एक बडी वजह यह है कि जब सुषमा बहुत पहले अपने लिए राज्य सभा की सीट तलाश रही थी तो उनके लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने नरेंद्ग मोदी से कहा था। मोदी ने गुजराती गौरव का गुब्बारा उछाल दिया था और आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने विदिशा की अपनी सीट लोकसभा चुनाव में सुषमा को सौपी और खुद सुषमा के लिए प्रचार भी किया। सुषमा लोकसभा की सदस्य भी बनीं और जब आडवाणी के उत्तराधिकारी की बात चल रही थी तो आडवाणी ने बहुत से लोगों की दावेदारी को किनारे करते हुए सुषमा को लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता भी बनाया। सुषमा स्वराज अब लोकसभा में राजनाथ सिंह को भी आदेश देंगी जो हाल तक पार्टी के अध्यक्ष थे और उस नाते सुषमा स्वराज ही नहीं, पार्टी के सभी नेता उनका आदेश माना करते थे। सुषमा स्वराज ने शिवराज सिंह की सरकार का गुणगान करने के लिए नरेंद्ग मोदी को निशाना क्यों बनाया यह तो अलग सवाल है लेकिन सुषमा ने कहा कि गुजरात सरकार को भाजपा के मुख्यमंत्रियों को मॉडल सरकार करार देने से पहले मध्य प्रदेश की सरकार की संवेदनशीलता देख लेनी चाहिए। मध्य प्रदेश में विकास भी हो रहा है और सुषमा की राय में संवेदनशील तरीके से हो रहा है। जाहिर है कि सुषमा ने एक तीर से दो शिकार किए है। शिवराज सिंह की संवेदनशीलता पर मोहर लगाई है और नरेंद्ग मोदी को एक बार फिर से हड़का दिया है। प्रतिपक्ष के नेता का पद लोकतंत्र में प्रधानमंत्री के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद होता है। ब्रिटिश और अमेरिकी लोकतंत्र में तो प्रतिपक्ष के नेता को छाया प्रधानमंत्री कहा जाता है। अगर भाजपा सरकार में आई तो प्रधानमंत्री पद की स्वाभाविक दावेदार सुषमा स्वराज ही होंगी। ऐसे में नरेंद्ग मोदी जैसे कद के नेता से झंझट मोल लेने का काम कर के सुषमा स्वराज ने बचपने का परिचय दिया। नरेंद्ग मोदी ने सुषमा स्वराज के इस बयान पर कुछ भी नहीं बोल कर राजनैतिक बड़प्पन भी दिखाया और यह संदेश भी दिया कि वे सुषमा स्वराज को कुछ नहीं समझते। वैसे भी जिससे भाजपा दूसरी पीढ़ी कहा जाता था वह अब पहली पीढ़ी बन गई है और नितिन गड़करी के तौर पर पार्टी के पास सबसे युवा अध्यक्ष मौजूद है। रही शिवराज सिंह की बात तो उन्हें सुषमा स्वराज के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं थी। प्रमाण पत्र तो मध्य प्रदेश के मतदाता ने उन्हें दूसरी बार शान से मुख्यमंत्री बना कर दे दिया है।

1 टिप्पणी:

  1. Quite a commendable article Pankajji.

    Madhya Pradesh has a history of CMs being elected for the consecutively for two terms. But the state of politics and corruption in the bureaucrats remained constant, though now it is systematic corruption. We don't want political leaders anymore, we need leaders who can rise from the pity politics of issuing statements and act responsibly.

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