बुधवार, अप्रैल 07, 2010

ग्रीन हंट कर रहा जवानों का शिकार

नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए ऑपरेशन ग्रीन हंट में जवानों का ही शिकार हो रहा है। सुरक्षा बलों के जवान बार-बार खुद नक्सलियों के छलावे में आकर थोक में जान दे रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ इस साल से तेज हुए अभियान में तीन महीने में ही 150 जवान मारे गए हैं, जबकि पिछले पूरे साल 317 जवान मारे गए थे। वहीं मंगलवार को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के जंगलों में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को मौत के घाट उतारा। अब तक का यह सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। इस राज्य में 2005 से अब तक 1600 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मुकराना के जंगलों में मंगलवार को आपरेशन ग्रीन हंट चल रहा था। सुरक्षा बलों के ट्रक के आगे एक एंटी लैंडमाइन वाहन चल रहा था जिसे माओवादियों ने विस्फोट से उड़ा दिया। इसके बाद घात लगा कर सुरक्षा बलों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं।गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, नया साल शुरू होने के बाद जबसे नक्सलियों के खिलाफ साझा अभियान ज्यादा तेज किया गया है तब से मारे गए नक्सलियों की संख्या सौ से भी कम है। अलबत्ता, इस दौरान नक्सली या उनसे सहानुभूति रखने वालों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां जरूर हुई हैं। 2009 में नक्सलियों ने 591 नागरिकों और 317 पुलिस बलों के जवानों को मारा। कुल मिलाकर एक हजार से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले नक्सलियों में से 217 ही मारे जा सके। खास बात है कि इनमें सबसे ज्यादा हत्यायें छत्तीसगढ़ के अलावा राष्ट्रपति शासन वाले झारखंड में अंजाम दी गई थीं।सूत्रों के मुताबिक, 2010 शुरू होने के बाद नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर खासतौर से निशाना लगाया है। मोटे तौर पर अब तक आम नागरिकों की तुलना में सुरक्षा बलों या राज्य पुलिस के जवानों पर ही नक्सली निशाना साध रहे हैं। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, चूंकि जवान अभियान में जंगलों के अंदर जा रहे हैं, उससे वे माओवादियों के शिकार भी बन रहे हैं। वजह साफ है कि अभियान का नेतृत्व कर रहे केंद्रीय बल के जवान इन इलाकों की भौगोलिक स्थिति से उस तरह वाकिफ नहीं है, जबकि माओवादी क्षेत्र के कोने-कोने से परिचित हैं। गृह मंत्री पी. चिदंबरम तो नया साल शुरू होते ही चेता चुके हैं कि इस साल भी नक्सलियों का उत्पात वैसे ही जारी रहने की आशंका है।संयुक्त अभियान में बढ़ सकती है सैन्य बलों की भूमिकानक्सलियों के ताजा हमले से चौंकी सरकार लाल हिंसा के खिलाफ जारी मुहिम में सैन्य बलों की परोक्ष भूमिका बढ़ाने पर विचार कर रही है। संकेत हैं कि नक्सल प्रभावित इलाकों में वायुसेना के टोही विमानों और उपकरणों की भूमिका बढ़ सकती है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री की अगुवाई में सुरक्षा तंत्र की सर्वोच्च मंत्रणा समिति की बैठक में नक्सलियों की नकेल कसने में सेना की भूमिका पर अनौपचारिक चर्चा जरूर हुई, लेकिन सरकार के आला ओहदेदार सेना के सीधे उपयोग से सख्त परहेज पर एकमत थे।हालांकि इस बात पर सहमति थी कि नक्सलियों की कमर तोडऩे के लिए सैन्य रणनीतिकारों की मदद बढ़ाने और साधन-संसाधनों के प्रयोग में इजाफा करने की जरूरत है। इसमें नक्सल विरोधी अभियान में लगे पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के रणनीतिक प्रशिक्षण के अलावा सूचना और संचार युद्ध में सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल शामिल है। यही वजह है कि बैठक के बाद मीडिया से रूबरू गृहसचिव जीके पिल्लै ने वायुसेना की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर इतना ही कहा कि हम किसी तरह की युद्धक भूमिका पर विचार नहीं कर रहे हैं। वायुसेना के विमान परिवहन समेत मौजूदा जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे। वायुसेना के छोटे विमान और हेलीकॉप्टर मौजूदा नक्सल विरोधी अभियान में राहत और बचाव कार्यों के अलावा रसद आपूर्ति मिशनों का हिस्सा हैं। इसके अलावा सेना के अधिकारी सुरक्षा बलों को जंगल और गुरिल्ला युद्ध नीति के गुर सिखा रहे हैं।भेदा खुफिया तंत्र नक्सलियों ने अब तक के सबसे बड़े इस हमले के लिए शिकंजा भी बेहद अचूक तैयार किया था। उन्होंने सुरक्षा बलों के खुफिया तंत्र में घुसपैठ कर उस इलाके में नक्सल ट्रेनिंग कैंप चलने की झूठी सूचना भिजवाई। कार्रवाई के लिए जब सुरक्षा बल पहुंचे तो उन पर तीन तरफ से घात लगा कर जबर्दस्त हमला किया गया। सुरक्षा बलों के खुफिया नेटवर्क में नक्सलियों की घुसपैठ कितनी तगड़ी थी, इस बात का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि वहां उपलब्ध सारी फोर्स इस सूचना पर कार्रवाई के लिए निकल पड़ी। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि ऐसी सूचना पर फौरी कार्रवाई तभी होती है, जब सूत्र बहुत पुराना और विश्वसनीय हो। इसके बावजूद इतने बड़े अभियान पर निकलने से पहले उसे दूसरे सूत्रों से भी पक्का किया जाता है। इसलिए लगता है कि नक्सलियों ने वहां के सरकारी खुफिया नेटवर्क में बहुत जोरदार पैठ बनाई थी। सीआरपीएफ की डेढ़ कंपनी हमले के इरादे से निकल पड़ी। नक्सलियों की कामयाबी में कुछ योगदान वहां मौजूद सुरक्षा बलों की ओर से लिया गया रणनीतिक फैसला भी हो सकता है। ऐसे ऑपरेशन को संचालित करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि आम तौर पर अभियान में शामिल सारे लोग एक साथ किसी जगह नहीं जाते। जबकि नक्सलियों ने जिस जगह सुरक्षा बलों को घेरकर मारा वह तीन तरफ से ऊंची पहाडिय़ों से घिरा मैदान जैसा इलाका था। लिहाजा सुरक्षा बलों को पलटवार का कोई मौका भी नहीं मिल पाया। ऐसे में सुरक्षा बलों के पास सिर्फ छुपकर खुद को बचाना ही एकमात्र चारा था। जवानों ने पेड़ की ओट ली, लेकिन नक्सलियों ने वहां पहले से ही प्रेशर माइंस लगाई हुई थीं। ज्यादातर मौतें इन प्रेशर माइंस के फटने से हुईं। यह हमला नक्सलियों के बेहतर खुफिया तंत्र और गुरिल्ला रणनीति के साथ ही आधुनिकतम तकनीक के इस्तेमाल में बढ़ती उनकी महारथ के संकेत दे रहा है। इस हमले में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग रोधी गाड़ी (एमपीवी) को भी उड़ा दिया। गृह मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि नक्सलियों की ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाला ऐसा दस्तावेज हाल ही में बरामद किया गया था जिसमें एमपीवी उड़ाने की तकनीक समझाई गई है, लेकिन यहां उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल भी कर दिखाया। इस तकनीक में एमपीवी को उड़ाने के लिए काफी बड़ी मात्रा में विस्फोटक की जरूरत होती है।

1 टिप्पणी:

  1. जब तक बेहतर नीतियां नहीं बनेंगी और उससे भी ज्यादा बेहतर उनका क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक नक्सली हावी रहेंगे। आज ही एक बार फिर गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने स्पष्ट कर दिया कि नक्सलियों पर न सैन्य कार्यवाही होगी, न हवाई हमले। सवाल यह है कि कब तक जवान इसी तरह मरते रहेंगे।

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