देश में अनिवार्य शिक्षा कानून लागू हो गया है लेकिन क्या कारण है कि उसके बाद अनिवार्य शिक्षा को लेकर अभियान और बहस जारी है। संविधान में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान होते हुए भी देश की लगभग आधे से ज्यादा आबादी का निरक्षर रहना शायद इस तस्वीर को साफ कर देता है कि बीते साठ दशकों में हमारी सरकारों ने शिक्षा के नाम पर अब तक ऐसे कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं जिससे देश का बच्चा शिक्षित हो सके। वर्तमान में जो कानून भी आया उसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का साफ-साफ खुलासा नहीं किया गया है। केंद्र और राज्य सरकारों की आपसी तनानती में देश का बचपन अनपढ़ रह जाता है और सरकारें एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए बजट के मुद्दे को आधार बनाकर शिक्षा जैसे मूल विषय से किनारा करने की कोशिश करती हैं। केन्द्रीय वित्त आयोग के अनुसार शिक्षा पर खर्च का अनुपात राज्य व केद्र के बीच में 65:35 का होना चाहिए फिर भी राज्यों की अपेक्षा है कि खर्च का 90 प्रतिशत केंद्र वहन करे। अगले पाँच वर्षों में षिक्षा से वंचित लाखो बच्चो को स्कूल से जोडऩे तथा 25 फीसदी गरीब बच्चो पर आने वाले खर्च की भरपाई के लिये केन्द्र को लगभग 1.71 लाख करोड़ रूपयों की जरूरत है जबकि सरकार के पास इस समय 75,000 करोड़ रूपये ही इस मद में उपलब्ध हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना हैं कि शिक्षा के अधिकार कानून को जमीन पर उतारने और उसे मध्य प्रदेश के वंचित बच्चों तक पहुंचाने में लगभग 13,000 करोड़ रूपये की आवश्यकता के विरूद्ध केंद्र ने 7,000 करोड़ देने की सहमति जतायी है, अत:शैक्षणिक संरचनाओं, शिक्षको, किताब, स्कूली ड्रेस के लिए राज्य सरकार को ही अतिरिक्त बजट जुटाना होगा। फिलहाल बजट की कमी को लेकर बनी स्थिति के कारण यह सवाल बना हुआ है कि क्या वास्तव में बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून जमीनी स्तर पर प्रभावी हो सकेगा? शायद यही वजह की शिक्षा की पैरोकार स्वयंसेवी संगठनों ने हाल ही में शिक्षा के लिए भीख मांग कर अनोखा प्रदर्शन किया। सरकार की इस उदासीनता को देखते हुये विश्व शिक्षा सप्ताह के अन्तर्गत बचपन, जन पहल, म.प्र. शिक्षा अभियान जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं ने शहर के प्रमुख चौराहों पर पहुँचकर सरकार के लिए भीख मांगा। इसकी एक वजह यह भी है कि मुख्य वजह यह भी है कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के नाम पर बड़े बड़े लक्ष्य प्राप्त करने के दावे हमारी सरकारें कर रही हैं उसके बाद भी राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त शिक्षा के लिये बजट न होने की दुहाई दी जा रही है। दे सरकार के नाम तेरे बच्चे पढ़ें ! इस गीत को गाते और बजट मे शिक्षा के लिये कम राशि तथा संसाधनों के अभाव के लिये सरकार को कोसते हुए स्वैच्छिक कार्यकर्ताओ के साथ पालकों ने भी भोपाल की गली-गली में घूमकर भीख मांगा। शिक्षा अभियान से जुड़ी सुषमा महाजन बताती हैं कि बच्चों की शिक्षा के बजट मामले मे बनी सरकारी उदासीनता के खिलाफ प्रदेश भर मे चलाये जा रहे शिक्षा के लिए भिक्षा अभियान के तहत् जमा रकम को राज्य व केन्द्र सरकार के पास ज्ञापन के साथ भेजा जायेगा। वह बताती हैं कि शहर के 10 नंबर मार्केट और न्यू मार्केट पर जब भीख मांगने वालों की टोली पहुँची तो स्थानीय दुकानदारों ने अभियान की बात को सुनते हुए सरकार को जमकर कोसा और मुफ्त शिक्षा को जहां मात्र दिखावा बताया वहीं भीख देने वालों में आम लोगों के साथ ही पन्नी बीनने वाले बच्चों ने भी भीख देते हुये सरकार को यह कहते हुए कोसा कि सरकार के पास गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिये पैसे नही है लेकिन दूसरे सभी काम क्या बिना पैसे के हो रहे है?
शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010
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