भारत का हृदय कहा जाने वाला मध्य प्रदेश हमेशा से अपराधियों के लिए सुरक्षित आरामगाह और वारदातों को अंजाम देने के लिए मुफीद माहौल तैयार करता रहा है और यहां की राजधानी भोपाल की गंगा-जमुनी तहजीब और आबोहवा तो उनके लिए स्वर्ग सिद्ध होती रही है। वैसे तो यहां मुंबई बम ब्लास्ट से लेकर कई और जघन्य अपराधों का तानाबाना बुना गया लेकिन 17 जून 2009 की रात बड़ौदा के कुछ शातिर धनाढ्य व्यवसायियों ने 'बलात्कारÓ का एक ऐसा खेल खेला जिसने मध्यप्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली और अफसरशाही के चरित्र पर ही बदनुमा दाग लगा डाला। लगभग एक साल पहले घटी इस फिल्मनुमा बलात्कार की घटना की जांच में जुटे अधिकारियों की कार्यप्रणाली ने तो बलात्कार की इस घटना का बलात्कार किया ही प्रकरण में बलात्कार पीडि़ता के बयानों ने भी आग में घी का काम किया। मुंबई की एक बार में नाचने वाली महिला अब मध्यप्रदेश पुलिस में ही दरार डालने का काम कर रही है। मप्र पुलिस की छवि को दागदार करने वाले इस बलात्कार कांड की जब की गई तो दूसरी ही कहानी निकल कर सामने आयी। दरअसल इस बलात्कार का बीज बड़ौदा के दो अपराधी किस्म के व्यवसायी भाइयों द्वारा बोया गया था। गुजरात पुलिस को अपने रूतबे और पैसे के बल पर उंगलियों पर नचाने वालों दोनो भाइयों कृष्णा और गोविंद सोमानी को स्थानीय पुलिस ने जब सहयोग देना बंद कर दिया तो उन्होंने अपने प्रतिद्वंदियों से बदला लेने के लिए मध्यप्रदेश पुलिस को अपने सांचे में ढ़ालना शुरू कर दिया। इनके खिलाफ विभिन्न मामलों में दो बार सीआईडी जांच भी हो चुकी है जिसमें उन्हें दोषी भी पाया गया।
वैसे तो मध्य प्रदेश को शांत प्रदेश के तौर पर जाना जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से राजनैतिक दूरंदेशी और वोट के गणित ने इस प्रदेश के सारे समीकरण गड़बड़ा कर रख दिए हैं। सत्ता में चाहे भाजपा काबिज हो या कांग्रेस सभी ने प्रदेश की सुरक्षा और अमन चैन के साथ समझौता कर ही सरकार को चलाया है। जिसका फायदा उठाकर सोमानी बंधुओं जैसे अपराधी और शातिर किस्म के लोगों ने इसे अपना चारागाह बना लिया है। सोमानी बंधुओं के अपराधों की फेहरिस्त में से यहां हम पहले बात करते हैं राजधानी में घटित बहुचर्चित गैंग रेप की।भोपाल के गांधी नगर में 17 जून 2009 को ईशा सिंह नामक महिला के साथ घटित चर्चित गैंगरेप काण्ड अब पुलिस के साथ ही सरकार के लिए अजब पहेली बन चुका है। फरियादी महिला बार-बार अपने बयान बदल कर सभी को चौंका रही है। इस मामले में प्रदेश को बदनाम करने की एक ऐसी कहानी सामने आ रही है, जिसमें पुलिस के अधिकारियों से लेकर कई सफेद कॉलर लोगों के दामन पर दाग लगता दिख रहा है। हालांकि एक साल बाद भी यह तय नहीं हो पाया है कि गांधी नगर में जो बलात्कार हुआ था वह किसने किया। क्योंकि पीडि़त महिला ने अपने बयान में कभी चार लोगों द्वारा बलात्कार करने की बात कही तो कभी एक व्यक्ति पर,तो कभी स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर ही आरोप मढ़ दिया।भोपाल के गांधीनगर इलाके में चलती गाड़ी में महिला से हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले में उस समय पहला नाटकीय मोड़ आया था जब पीडित महिला ने यह आरोप लगाया कि उससे दुष्कर्म करने वालों में उसका साथी भी शामिल था, जिसे मामला दर्ज करते समय महिला का पति बताया गया था। महिला ने बताया कि वह मुम्बई के बार में डांस किया करती थी, लेकिन अब वह आर्केस्ट्रा में गाना गाती है। महिला जिसे अपना पति बता रही थी वह उसका पति नहीं था, घटना से करीब 15 दिन पहले आर्केस्टा के दौरान उसकी मुलाकात बार में काम करने वाले प्रमोद सिंह से हुई। प्रमोद उसे 15 जून को भोपाल घुमाने के इरादे से लेकर आया था। इसके लिए उसने महिला को 20 हजार रुपए देने का वादा किया था। दो दिनों तक शहर में घूमने के बाद 17 जून को दोनों आसाराम बापू के आश्रम पर गए। यहां से लौटने के दौरान प्रमोद के दोस्त राजेश व संजय काली गाड़ी लेकर यहां पर पहुंच गए। प्रमोद के कहने पर महिला गाड़ी में बैठ गई। इसके बाद संजय और प्रमोद ने महिला के साथ बारी-बारी से दुष्कर्म किया। इस दौरान राजेश गाड़ी में आगे की सीट पर बैठा हुआ था और ड्राइवर गाड़ी चला रहा था। बाद में महिला पर कट्टा अड़ाकर उसे जान से मारने की धमकी दी गई। धमकी में यह भी कहा कि जैसा प्रमोद कहे वैसा करना है। इसके बाद प्रमोद ने उसका कुर्ता ब्लेड से काटकर फाड़ दिया और उसे लेकर वह मुबारकपुर से खजूरी सड़क की ओर जाने वाले रास्ते पर उतर गया। प्रकरण की सुनवाई अदालत में चल ही रही थी कि कुछ दिन पूर्व ईशा सिंह ने अदालत में यह बयान देकर सबको चौका दिया कि उसके साथ गांधीनगर थाना प्रभारी अनुराग पांडे ने बलात्कार किया था। अभी यह आरोप सुर्खियों में छाया ही था कि इस गैंगरेप कांड में एक और नया मोड़ आ गया। पीडि़त महिला ने एसएसपी आदर्श कटियार को भेजे पत्र में कहा कि उसके साथ थानेदार ने नहीं, बल्कि पुलिस के एक सीनियर अफसर ने अपने घर में बलात्कार किया था। उक्त आईपीएस अफसर मोटे-तगड़े हैं और मंकी कैप लगाते हैं। यह खुलासा करते हुए गांधीनगर गैंगरेप कांड की फरियादी द्वारा यह पत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता, डीजीपी एसके राउत, आईजी डा. शैलेंद्र श्रीवास्तव के साथ राज्य महिला आयोग को भी भेजा गया है। पत्र में कई सनसीखेज खुलासे किए गए हैं। जिसमे महिला ने कहा है कि वह अदालत में बयान देने के लिए 12 मार्च 2010 को भोपाल आई थी। यहां वह अपने वकील और हितेष सोमानी के साथ पुलिस के एक बड़े अफसर के घर गई। पत्र में किसी अफसर का नाम न लिख अफसर का हुलिया बताते हुए कहा कि अफसर मोटे-तगड़े हैं और मंकी कैंप लगाते हैं। उनके घर पहुंचने पर मामले के आरोपी व प्रसिद्ध उद्योगपति कृष्णा सोमानी व गोविंद सोमानी भी अधिकारी के साथ मौजूद थे। घर में ही महिला से कहा गया कि यदि उसने पुलिस पर बलात्कार करने का आरोप नहीं लगाया, तो उसे जिंदा दफन कर दिया जाएगा, इससे वह डर गई थी। इसलिए अदालत में दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से थानेदार अनुराग पांडे पर बलात्कार करने का आरोप लगाया था। असलियत यह है कि बलात्कार श्री पांडे ने नहीं, बल्कि कृष्णा, गोविंद व प्रमोद सिंह ने किया था। आईपीएस अफसर ने भी अपने घर में महिला के साथ बलात्कार किया था। उसे यह धमकी दी गई थी जो उनकी बात नहीं मानते उसे वे सबक सिखाते हैं और पुलिस भी कुछ नहीं कर पाती है। पत्र में महिला ने कहा कि वे खतरनाक लोग हैं। मुझे झूठे केस में फंसाने की धमकी भी दे रहे थे। महिला ने पत्र में इस बात जिक्र किया है कि अब वह कभी भोपाल नहीं आएगी। सिंह के बयान और पत्र से तो यही लगता है कि वह किसी तरह इस मामले से पीछा छुड़ाना चाहती है। लेकिन भोपाल पुलिस भी इस मामले को सही दिशा में ले जाकर तहकीकात करने से कतरा रही है। क्योंकि पुलिस का घटना के बाद से ही रवैया ऐसा रहा है जिससे यह मामला उलझता जा रहा है। जबकि प्रदेश को शर्मसार करने वाली इस घटना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया है। इस कहानी में सबसे पहले पीडि़त महिला को प्रमोद सिंह की पत्नी बताया गया, लेकिन पुलिस पड़ताल में यह सामने आया कि प्रमोद और पीडि़त महिला पति-पत्नी नहीं है। प्रमोद को जब गिरफ्तार किया तो उसके चौकाने वाली साजिश का खुलासा किया। दरअसल गुजरात के उद्योगपति कृष्णा और गोविंद सोमानी ने प्रमोद को अपनी एक साजिश का हिस्सा बनाया था। माना जाता है कि हत्या के प्रकरण में जब कृष्णा सोमानी फरार था, तब बहुत खोजने के बाद पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया था। तब से कृष्णा को शक है कि सोने के व्यापारी सत्यनारायण उर्फ सत्तू ने उसे पकड़वाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद वहां की जेल में पदस्थ डॉक्टर मुकेश ब्रह्मïदत्ता से कृष्णा ने जेल की चार दीवारी से बाहर आने के लिए बात की, लेकिन उन्होंने इसकी मेडिकल रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं दर्शाया जिससे कृष्णा बाहर आ पाता। मुकेश ब्रह्मïदत्ता बड़ौदा के जाने माने ह्दय रोग विशेषज्ञ है। वहीं कृष्णा ह्दय का मरीज है। इन बातों को लेकर कृष्णा, गोविंद और मुकेश दोनों से खफा था। इसी के चलते उसनेे गैंग रेप की शाजिस रच इन दोनों को उसमें फंसाने की योजना बनाई। जिसको मप्र की राजधानी में सफलता पूर्वक अंजाम तक पहुंचाया गया। पुलिस पूछताछ में इस बात का खुलासा कृष्णा और गोंविद सोमानी के सौतेल भाई हितेश ने किया है। यह बात प्रमोद को भी पता थी। इन लोगों को फंसाने के लिए प्रमोद ने मोटी रकम सोमानी बंधुओं से ली थी। सांजिश के तहत डॉक्टर मुकेश बह्मभट्ट और व्यापारी सत्तनारायण को भोपाल लाने का जिम्मा मुम्बई के अरुण मित्रा को सौंपा गया। अरुण मित्रा ने इसके लिए मुम्बई की ही युवती रूबी ठाकुर की मदद ली। रूबी, अरुण दोनों मिलकर डॉ. मुकेश और सत्यनारायण को लेकर भोपाल आए। यहां की एक होटल में मुकेश और रूबी मिले। 17 जून की रात को मुकेश और सत्यनारायण को भोपाल एयरपोर्ट के आसपास गाड़ी में घूमाया गया। इसी दौरान दूसरी गाड़ी में कृष्णा, गोविंद सोमानी और प्रमोद मुम्बई से लाई गई महिला के साथ थे। बलात्कार पीडि़त महिला को गुमराह करने के लिए आरोपियों ने अपने नाम संजय और राजेश बताए थे। इन नामों को प्रमोद ने ही उसे बताया था। प्रमोद ने पुलिस को बताया है कि वह गोंविंद और कृष्णा को करीब सात- आठ साल से जानता है। इन लोगों की पहचान उससे मुंबई के एक बार में हुई थी। दोनों भाई प्रमोद को मोटी टीप दिया करते थे। इसी दौरान प्रमोद दोनों को लड़कियां भी सप्लाई करता था। इसके बाद प्रमोद लड़कियों को लेकर बड़ौदा भी जाता था। बड़ौदा में सोमानी बंधु प्रमोद को एक ही होटल में रुकवाते थे। घटना के दिन मुंबई की रूबी ठाकुर नाम की युवती सांजिश में शामिल अरुण कुमार मित्रा के साथ बड़े तालाब के किनारे की एक होटल में रूकी थी, मित्रा के इशारे पर काम करने वाली यह युवती श्यामला हिल्स स्थित एक नामी होटल में ठहरे बड़ौदा के डॉक्टर मुकेश ब्रह्मïदत्ता के पास भी गई थी। इसके बाद ही गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया गया था। यहां से पुलिस ने सत्तू और मुकेश के नाम लिखे चांदी के दो ब्रेसलेट बरामद करने के साथ ही कालीन, कंडोम भी बरामद किया था।पुलिस को यह भी पता चला है कि युवती अहमदाबाद और बड़ौदा के आलीशान होटलों में भी आती-जाती रही है। अरुण कुमार मित्रा इस मामले के मुख्य आरोपी गोविंद और कृष्णा सोमानी का दोस्त है। सोमानी बंधुओं ने इसी के साथ मिलकर इस योजना को अंजाम देने रणनीति बनाई थी। योजना के मुताबिक अरुण को भी एक युवती अपने साथ भोपाल लानी थी। अरुण, रूबी को लेकर भोपाल आया। रूबी के जिम्मेदारी दी गई कि वह कुछ देर के लिए होटल में ठहरे डॉक्टर मुकेश के साथ रहे। बहरहाल इस पूरे प्रकरण के माध्यम से जो व्यावसायिक प्रतिद्वंदता सामने आई वह पूरी तरह चौकाने वाली हैं और इसकी नीव अब से लगभग 17 वर्ष पहले गुजरात में ही डाली गई। वह समय था जब बड़ौदा शहर में राजू पारिख, राजन पारिख एवं भरत पारिख अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे थे इनका जीपीटी और स्टील का व्यवसाय है। पारिख बंधुओं की ऑफिस की बिल्डिंग में ही कृष्ण एवं गोविंद सोमानी का भी कार्यालय है। सोमानी बंधुओं की 8 कंपनियां है जिसमें से सोमानी सीमेंट नाम की एक कंपनी थी। सोमानी बंधुओं ने इस कंपनी को खड़ा करने के लिए कई लोगों को करोड़ों का चूना लगाया। शातिर दिमाग इन भाइयों ने अपने षडयंत्र में बकायदा पुलिस को भी शामिल किया था। अपने रूतबे और पैसे के बल पर व्यवसाय बढ़ाने के आदी हो चुके सोमानी बंधुओं ने कई लोगों को करोड़पति से खाकपति बना दिया। झूठ और फरेब के आधार पर चल रही उनकी सीमेंट कंपनी में रामजी भाई पटेल एवं रामभाई पटेल निवासी अहमदाबाद ने भी लगभग 2-3 करोड़ रुपए निवेश किए थे। कुछ समय बाद जब पटेल बंधु अपना हिस्सा मांगने लगे तो सोमानी बंधुओं ने वर्ष 1997 में उन्हें एडवांस बायोकॉल कंपनी में बुलाकर इंदौर के गुण्डों से मिलकर हत्या करवा दी। इस हत्याकांड को एक स्थानीय अंग्रेजी पत्रिका आईवाय के संपादक प्रकाश ज्योति पाण्ड्यन पिल्ले ने उजागर किया। उक्त प्रकरण में कृष्णा सोमानी ने वर्ष 2003 में उम्र कैद हुई तथा गोविंद सोमानी को बरी कर दिया गया। कुछ दिनों बाद कृष्णा सोमानी ने अपनी पत्नी की बीमारी का बहाना बनाते हुए अंतरिम पेरोल प्राप्त किया तथा प्रकरण में उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उक्त पेरोल की अवधि में वह वापस जेल नहीं पहुंचा और वह फरार हो गया। वर्ष 2005 में सोमानी एवं जीपीटी के मध्य डील हुई। उक्त डील में सोमानी बंधुओं ने 100 करोड़ की एंट्री जीपीटी को दी, जिसे उसे अपने खाते में घुमाकर वापस देना था, जिसके एवज में सोमानी बंधुओं को 5 करोड़ रुपए जीपीटी से प्राप्त होने थे। उक्त डील में 70 करोड़ की राशि जीपीटी को दी गई जिसे उसने अपने खाते में घुमाया परंतु वापस नहीं किए। सोमानी बंधुओं ने जीपीटी को कहा कि हमें 15 करोड़ रुपए बैंक में दिखाने के लिए चाहिए। जीपीटी लंदन से भरत पारिख ने 15 करोड़ रुपए ऋद्धि इन्वेस्टमेंट एवं एडवांस बायोकॉल कंपनी को दिए जो कृष्णा एवं गोविंद सोामनी की कंपनियां है। इसके एवज में एडवांस बायोकॉल कंपनी ने 5-5 करोड़ के तीन चैक जीपीटी को दिए। उक्त रुपयों से सोमानी बंधुओं ने 4 नई कंपनी बनाकर उसमें डाल दिए। इसी बीच उनके द्वारा दिए गए 15 करोड़ के चैक बाउंस हो गए। चैक बाउंस होने के बाद जनवरी 2006 में राजू पारिख प्रकाश पिल्लई के पास गया और उससे सोमानी बंधुओं के चैक बाउंस होने की बात बताई और कहा कि इसके चलते मेरी कंपनी बंद होने की कगार पर है और तुम हमारे 15 करोड़ रुपए दिलवा दो। प्रकाश पिल्लई जीपीटी की ओर से सोमानी बंधुओं के पास मध्यस्थता करने गया। अप्रैल 2006 में सोमानी बंधुओं ने दो श्योरिटी चैक देकर कहा कि 2008 अप्रैल तक जीपीटी का पेमेंट चालू कर देंगे। इसी दौरान सोमानी बंधुओं को पता चला कि प्रकाश पिल्लई कार लेने जा रहा है तो उन्होंने उसे कोटक महिन्द्रा से पैसा दिलवाने की बात कहकर उसके फोटो एवं प्रगति सहकारी बैंक एलेम्बिक रोड में खाता क्रमांक 15146 की पासबुक की फोटो कॉपी एवं पेनकार्ड की फोटो कॉपी ले ली।7 अप्रैल 2006 को पिल्लई के घर पर एक ऑटो रिक्शा आया, जिसमें गेहूं चावल थे। रिक्शा चालक ने पिल्लई की पत्नी से कहा कि उनके पति ने यह भिजवाया है और वह सामान उतार कर चला गया। इसी दौरान थाना वाडी के निरीक्षक आरएम राठौड़ और उनके स्टाफ ने वहां दबिश दी और उक्त थैलों को जब्त कर लिया और कहा कि इसमें एनडीपीएस एक्ट लगेगा। घटना की सूचना मिलते ही पिल्लई तत्काल अपने घर पहुंचा जहां उसे उसके परिवार सहित बैठा लिया गया। रात 11 बजे के करीब उसके इलाके के थाना प्रभारी के डी वाहाणे आए और उन्होंने रेड करने की बात कहते हुए मीडिया को बुला लिया। इसी बीच राठौर जाकर बैग भर नारकोटिक्स का माल लेकर आए जिसे मीडिया के सामने प्रदर्शित किया गया। रात को पिल्लई ने सीएम आनलाईन पर इसकी शिकायत की। बाद में उसकी पत्नी के गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय की पहल पर सीआईडी क्राइम जांच कराई गई जहां पिल्लई को दोषमुक्त कर दिया गया और दोषी अधिकारियों एवं कृष्णा सोमानी के विरुद्ध कार्रवाई की गई। गोविंद सोमानी को सीआईडी ने प्रकरण से बाहर कर दिया जिस पर पिल्लई द्वारा 173 (8) जाफौ में याचिका दायर की गई। 21 फरवरी 2007 को उच्च न्यायालय गुजरात ने पिल्लई के प्रकरण से स्टे हटाकर गोविंद सोमानी और अन्य मुल्जिमों की संलिप्तता के संबंध में छानबीन हेतु सीआईडी को निर्देश दिए।गुजरात पुलिस की मिलीभगत के बाद भी अपने मंसूबे पूरे होता न देख सोमानी बंधुओं ने मप्र पुलिस के सहयोग से पिल्लई को सबक सिखाने की ठानी। इसके लिए म.प्र. के सीमावर्ती जिला रतलाम का चयन उनके द्वारा किया गया। 26 फरवरी 2007 रतलाम जिले के जावरा थाने के महु-नीमच रोड पर स्थित साईराज होटल के रूम नंबर 08 में पुलिस ने थाना प्रभारी एमके भार्गव के नेतृत्व में छापामार कार्रवाई का रमेश पिता पाथे सिंह को गिरफ्तार किया जिसके कब्जे से एक रैगजीन के काले रंग का बैग, जिसमें फॉलीथीन की थैलियों में अफीम जैसा मादक पदार्थ, 3 किलो 800 ग्राम पाया गया। आरोपी रमेश ने बताया कि होटल में उसके साथ बड़ौदा के प्रकाश पिल्लई भी ठहरे हैं और यह माल उनका है। मैं तो उनका नौकर हूं और 100 रुपए प्रतिदिन की एवज में उनके लिए काम करता हूं। वे बाजार की तरफ गए हैं। आरोपी रमेश की तलाशी पर एक पॉकेट डायरी, रेलवे रिजर्वेशन टिकट दिनांक 22.2.07 (पीएनआर नंबर 8209792867) दो व्यक्तियों का बड़ौदा प्रति सहकार बैंक का पैसा जमा करने की रसीदें, टेलीफोन की एसटीडी पीसीओ की रसीदें जिस पर लैण्ड लाइन नंबर 2394383 है। अनुसंधान के दौरान रेलवे आरक्षण मांगपत्र के अनुसार दिनांक 22.02.07 को प्रकाश पिल्लई एवं उनके नौकर रमेश का आरक्षण बड़ौदा से रतलाम के लिए होना पाया गया, जिसमें रमेश द्वारा हस्ताक्षर किये गये थे। रेलवे आरक्षण आवेदन में आरोपी प्रकाश पिल्लई का ई-95, सुपरमैन सोसायटी सुभानपुरा बड़ौदा, ट्रेन नंबर 9037 (अवध एक्सप्रेस) अंकित था। उक्त पता होटल साईराज में कमरा लेते समय भी लेख कराया गया था। अफीम की जब्ती के पश्चात समस्त कार्यवाही संपादित कर थाना जावरा शहर में अप क्र. 66/07 धारा 8/18 एनडीपीएस एक्ट पंजीबद्ध किया गया। इस मामले में भी पिल्लई द्वारा मप्र के मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को पत्र लिख सीआईडी जांच कराने की मांग की। उसके बाद जब सीआईडी के उप पुलिस अधीक्षक देवेंद्र सिंह सिरौलिया ने जब मामले की जब तहकीकात की तो इसमें भी सोमानी बंधुओं की पुलिस से मिलकर साजिश रचने की बात सामने आई। सूत्र बताते हैं कि जिस आसानी से सोमानी बंधुओं ने मप्र पुलिस को अपने पाले में लेकर इस घटना को अंजाम दिया था उससे उनका मन और बढ़ गया जिसका परिणाम था भोपाल गंैगरेप कांड। यह गंैगरेप कांड क्या गुल खिलाता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इससे जो बात निकलकर सामने आ रही है उससे तो यही लगता है कि पैसे के मद में चूर बड़ौदा के शातिर व्यवसायियों की हाथ की कठपुतली बन गई है मप्र पुलिस। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में सोमानी बंधु भले ही अपने प्रतिद्वंदियों को मात देने में नाकाम रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है कि किसी भी महिला के लिए बलात्कार का शिकार होना बहुत बड़ा हादसा है। शायद उसके लिए इससे बड़ी त्रासदी कोई है ही नहीं। बदकिस्मत से अपने देश में महिलाओं से बलात्कार की दर निरंतर बढ़ती जा रही है। यह एक जघन्य अपराध है, लेकिन अक्सर गलतफहमियों व मिथकों से घिरा रहता है। एक आम मिथ है कि बलात्कार बुनियादी तौर पर सेक्सुअल एक्ट है, जबकि इसमें जिस्म से ज्यादा रूह को चोट पहुंचती है और रूह के जख्म दूसरों को दिखायी नहीं देते। बलात्कार एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है। इसके कारण शरीर से अधिक महिला का मन टूट जाता है। बहरहाल, जो लोग बलात्कार को सेक्सुअल एक्ट मानते हैं, वह अनजाने में पीडि़त को ही सूली पर चढ़ा देते हैं। उसके इरादे, उसकी ड्रेस और एक्शन संदेह के घेरे में आ जाते हैं, न सिर्फ कानून लागू करने वाले अधिकारियों के लिए, बल्कि उसके परिवार व दोस्तों के लिए भी। महिला की निष्ठा व चरित्र पर प्रश्न किये जाते हैं और उसकी सेक्सुअल गतिविधि व निजी-जीवन को पब्लिक कर दिया जाता है। शायद इसकी वजह से जो बदनामी, शर्मिंदगी और अपमान का अहसास होता है, बहुत-सी महिलाएं बलात्कार का शिकार होने के बावजूद रिपोर्ट नहीं करतीं। बलात्कार सबसे ज्यादा अंडर-रिपोर्टिड अपराध है। बहुत से मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों का मानना है कि बलात्कार हिंसात्मक अपराध है। शोधों से मालूम हुआ है कि बलात्कारी साइकोपैथिक, समाज विरोधी पुरूष नहीं हैं जैसा कि उनको समझा जाता है। हां, कुछ अपवाद अवश्य हैं। बलात्कारी अपने समुदाय में खूब घुलमिल कर रहते हैं।
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