सोमवार, मई 03, 2010

हृदय प्रदेश बना घोटाला प्रदेश

पंकज शुक्ला

इंदौर जमीन घोटाले मामले में मीडिया दो भागों में विभाजित हो गया है। इस मामले को छापना जहां कई अखबारों की मजबूरी बन गई है, वहीं पर कई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस मामले को चुटकारियां लेते हुए अपने दर्शकों को दिखा रहे हैं। मीडिया के लिए प्रेस्टीज ईश्यू बने इस मामले में कई समाचार पत्र भी मामले में मौन हैं अगर इंदौर में देखा जाए तो पूरी तरह कैलाश विजयवर्गीय और उनके साथियों की इज्जत को तार-तार कर दिया है। मामला जबकि अभी विवेचना में है पर उनके प्रतिद्वंद्वियों और उनके अहंकार को देखते हुए किसी ने भी उनको छोड़ा नहीं है। इंदौर नहीं बल्कि दिल्ली तक इसकी आवाज जोर-जोर से सुनाई दे रही है कि कैलाश विजयवर्गीय इस्तीफा दो, नहीं शिवराज तुम इस्तीफा लो। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा ने उन्हें सलाह दे डाली हैं कि वह अहंकार छोड़ दें और असंयमित होकर बयानबाजी करने की बजाय शालीन रहे और दृढ़ता से अपना पक्ष रखे।

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद और भ्रष्टाचारियों को नहीं बक्शने की बात करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में घोटालों की बाढ़ आ गई है। ऐसे में राजनैतिक पार्टियां प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश की जगह घपला प्रदेश की संज्ञा दे रहीं हैं? घोटाले की एक गूँज शांत नहीं होती कि दूसरा घोटाला उजागर हो जाता है। इन घोटालों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के मौजूदा 6 मंत्री ऐसे हैं जिन पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर लोकायुक्त में जांच चल रही है। वहीं पिछले कार्यकाल के दौरान रहे अन्य चार मंत्रियों पर भी लोकायुक्त में जांच चल रही है। शिवराज सिंह ने जब सत्ता की बागडोर संभाली थी तो भ्रष्टाचार मुक्त व स्वच्छ प्रशासन के बड़े बड़े होर्डिंग्स शहर के प्रमुख स्थानों पर लगाए थे। किन्तु लगभग पिछले साढ़े तीन वर्ष के कार्यकाल में शिव के राज में भ्रष्टाचार का बोलबाला चरम पर है। राज्य में आला अधिकारी इनकम टैक्स के छापों में लगातार फंस रहे हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री चुप हैं ? अनेक अधिकारियों व नेताओं के खिलाफ भूमि घोटाले में शामिल होने के पुख्ता सबूत सरकार के पास हैं। फिर भी मुख्यमंत्री चुप है? राज्य के आला अधिकारी मलाई काटने में वयस्त हैं फिर भी मुख्यमंत्री चुप है? राज्य में साठ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था रसातल में जा रही है। फिर भी मुख्यमंत्री चुप है? मुख्यमंत्री की कथनी और करनी का अंतर उनकी चुप्पी से आंका जा सकता है?राज्य के आला अधिकारी आंकड़ों की बाजीगिरी कर दिल्ली में पुरस्कार लेकर वाह वाही लूटने में वयस्त है। नरेगा की राशि का खुला दुरुपयोग राज्य की जनता से छुपा नहीं है। अनेक बार केन्द्रीय मंत्रियों, एनजीओ द्वारा समय समय पर तथ्य प्रस्तुत किये गए। पर भ्रष्टाचार के इस दलदल में सारी बातें भैंस के आगे बीन बजाने जैसी हैं। जनता को सर्वोपरी मानने वाली भाजपा का मूल संगठन संघ इस पूरे मामले पर खामोश है। जिस राज्य में अपराधियों के हौसले बुलंद हों, किसान आत्महत्या को विवश हो, जनता त्राही-त्राही कर रही हो। ऐसे राज्य को बदहाल प्रदेश कहा जाए तो क्या गलत है। सरकार की जांच एजेंसियां मामलों की वर्षों से लीपापोती करने में व्यस्त हैं और कर्मठ मुख्यमंत्री की अकर्मण्यता इन जांच एजेंसियों को आज भी प्रभावी न बना सकी है अपने मुख्यमंत्री काल में शिवराज की छवि कभी भी प्रभावी मुख्यमंत्री की नहीं रही ,ऐसे में नेताओं व अधिकारी पर नकेल न कसना भी भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण है।

वर्तमान में ऐसा ही एक भ्रष्टाचार का मामला है इंदौर का जमीन घोटाला। जो इन दिनों सुर्खियाँ बना हुआ है। इसमें प्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कठघरे में खड़े हैं। उन पर आरोप है कि महापौर रहते हुए इंदौर के सुगनी देवी कॉलेज के पास की लगभग 10 करोड़ की जमीन औने पौने दाम में बेच दी। इस मामले में उनके साथ तात्कालीन कमिश्नर भी सवालों के घेरे में हैं। मामला लोकायुक्त में पहुँच चुका है। कैलाश विजयवर्गीय के महापौर और रमेश मेंदेला के एमआईसी सदस्य रहते हुए निगम अफसरों पर दबाव बनाकर एमआईसी द्वारा वर्ष 2000 में संकल्प पारित कराकर नंदानगर सहकारी संस्था को देने की शुरुआत हुई। जिसके बाद उस जमीन की लीज 30 सालों तक बढ़ाने की अनुमति देने की बात कही गई। साथ ही यह भी कहा गया कि नई लीज के लिए दरें पुरानी ही रखीं जाएँ। अब सवाल यह उठता है कि नई लीज पुरानी दरों पर रखने की बात किसके कहने पर की गई। क्या निगम अधिकारियों को यह नहीं पता था कि रमेश मेंदेला ही नंदानगर सहकारी संस्था के सर्वेसर्वा है?इस पूरे प्रकरण में एक और बात जो सामने आयी है वह यह है कि सुगनीदेवी कॉलेज से लगी जमीन जो कि धनलक्ष्मी के नाम पर थी अभी तक नंदानगर सहकारी संस्था के नाम हस्तांतरित नहीं हुई लेकिन फिर भी उसका किराया वसूला जाता रहा।

नगर निगम की रिपोर्ट के मुताबिक जमीन नंदानगर सहकारी संस्था को अभी तक हस्तांतरित नहीं की गई है। क्योंकि जमीन खरीदने के बाद लीज हस्तांतरण का प्रस्ताव एमआईसी के समक्ष रखा गया था। प्रस्ताव पारित होने के बाद हस्तांतरण की अनुमति के लिए फाइल राज्य सरकार के पास भेजी गई। लेकिन राज्य सरकार की तरफ से लीज हस्तांतरण की अनुमति नहीं मिली। लिहाजा जमीन अभी भी धनलक्ष्मी के ही नाम पर है। इन सबके बावजूद इस जमीन को संस्था द्वारा किराए पर दिया जाता है। इस प्रकरण पर रमेश मेंदोला अपनी सफाई देते हुए कहते हैं कि वे इस विवादित जमीन को छोडऩे कटाई तैयार नहीं हैं। क्योंकि जमीन में संस्था के सदस्यों की पूंजी लगी है। इसीलिये इसे विधिवत संस्था के नाम कराया जाएगा। सुगनी देवी कॉलेज जमीन अवैध रूप से हथियाने के आरोप में फंसे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला के खिलाफ लोकायुक्त ने जांच शुरू कर दी है। लोकायुक्त ने इस मामे से जुड़े सभी दस्तावेज जाप्त कर लिए हैं। जिनकी जांच की जायेगी। उधर इस मामले पर राज्य सरकार की चौतरफा किरकिरी भी हो रही है। इस मामले में कैलाश विजयवर्गीय खुद को निर्दोष बता रहे हैं। हालांकि स्वयं के बचाव में कोर्ट जाने की बात को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा है कि वे जांच में लोकायुक्त का पूरा सहयोग करेंगे। दूसरे तरफ विपक्ष भी इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता। इस मामले पर जहां इंदौर में प्रदर्शन किये गए वहीं कांग्रेस ने इस्तीफे सहित नार्को टेस्ट की मांग तक कर दी है। वहीं सुगनी देवी कॉलेज जमीन घोटाला उजागर होते ही विजयवर्गीय के धुर विरोधी सक्रीय हो गए हैं और दिल्ली में लॉबिंग कर कर रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप के बीच कैलाश विजयवर्गीय भी दिल्ली और भोपाल के बीच में चक्कर काट मामले के लीपापोती में लगे हुए हैं। विजयवर्गीय की धुर विरोधी सुमित्रा महाजन भी मौके का फायदा उठाने में लगी हुई हैं और दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर वास्तविकता बता रही हैं। जबकि इसी मामले में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को नागपुर संघ मुख्यालय में सफाई भी देनी पड़ी है।

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