पार्टी विद द डिफरेंस का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी अब पार्टी विद इनडिफरेंस होती जा रही है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक पार्टी संगठन में अनुशासनहीनता की घटनायें आये दिन बढ़ती जा रही हैं। आज हालात यह हैं कि अनुशासनहीन नेताओं के दबाव में आकर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी जा रही है। लिहाजा पार्टी में प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू हो गयी है। यह प्रेशर पॉलिटिक्स इस हद तक पहुंच गई है कि नेता आपस में बंटे-बंटे दिख रहे हैं।
मध्य प्रदेश में सरकार भारतीय जनता पार्टी की है जिसका मुख्य नारा चाल, चरित्र और चिंतन है मगर शिवराज सिंह चौहान की सरकार आखिरकार वैसे ही चल रही है जैसे सरकारें चलती है। जब तक सिर पर नहीं आ जाए तब तक आंखे बंद करे रहो और जब सबूत निरुत्तर कर दें तो किसी के जमीर को जगाकर बलि ले लो। यानी तख्त आपका, ताज आपका, फरमान आपका और अरमान आपका। इसी तर्ज पर चल रही है शिवराज सिंह चौहान की सरकार।
स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने में लगे प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के राज में ऐसा लगता है जैसे भ्रष्टाचार यहां आचार-विचार का एक आवश्यक अंग बन गया है। मंत्रियों, नेताओं के साथ ही नौकरशाह, अधिकारी, कर्मचारी इसे बढ़ावा देने में पीछे नही है। सरकार भ्रष्टाचार के मामले में आये दिन बदनाम हो रही है...।
भाजपा नेताओं कि माने तो बदनामी का दंश झेल रही मप्र सरकार का जमीर जाग गया है और वह अब किसी भी दोषी को बख्शेगी नहीं। प्रदेश के दागी मंत्रियों पर कार्रवाई की जमीन तैयार हो गई है। रतलाम में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री को कार्रवाई की छूट दे दी गई है। पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार ने सरकार को फ्री हैंड देते हुए कहा है कि वे दागी मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं। केंद्रीय नेतृत्व उनके साथ है। शायद यही कारण है कि जिस तरह कहानियां खत्म होने से पहले कई मोड़ लेती हैं, उसी तरह शिवराज कबीना के हाईप्रोफाइल मंत्री अनूप मिश्रा की कहानी का भी हश्र हो गया है। यानी केंद्रीय नेतृत्व की धमकी के साथ ही सरकार के साथ उनका भी जमीर जाग गया और उन्होंने अपना इस्तीफा आधे मन से दे दिया। इस्तीफा दिया या उनसे लिया गया यह तो शिवराज सिंह चौहान या स्वयं अनूप मिश्रा ही बता सकते हैं। हालांकि भाजपा सूत्रों की माने तो उन्हें बचाने के लिए जितने प्रयास हुए, उतने ही प्रयास उन्हें मंत्री पद से विदा करने के भी हुए। यानि दोनों तरफ से जोर बराबर का ही लगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे होने के नाते श्री मिश्रा की गिनती प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेताओं में होती है। उनके इस्तीफे की खबर से राजधानी भोपाल के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों से लेकर दिल्ली तक खलबली मच गई। इसके साथ ही अन्य दागी मंत्रियों के भविष्य को लेकर कयास और अटकलों का दौर भी चल पड़ा। लेकिन पार्टी ने यह कह कर अटकलों पर विराम लगा दिया कि मिश्रा ने इस्तीफा देकर नैतिकता का परिचय दिया है। यदि यह बात मान भी ली जाए तो क्या और मंत्रियों में नैतिकता नहीं है कि बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद भी मंत्रियों ने इस्तीफा नहीं दिया। इससे ऐसा लगता है कि अनूप मिश्रा ने किसी न किसी दवाब में इस्तीफा दिया है, और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसे आनन-फानन में स्वीकार कर लिया। आखिर अनूप मिश्रा का इस्तीफा स्वीकार करने का मापदंड क्या है? यदि थाने में दर्ज एफआईआर को ही आधार बनाया गया है तो क्या यह उचित है।
मप्र भाजपा में कभी कदावर नेता के रूप में गिने जाने वाले एक पूर्व मंत्री ने बताया कि सुचिता के नाम पर अपने विरोधी को बलि चढ़ाने की परम्परा का निर्वहन मात्र है अनूप का इस्तीफा। अगर लोकायुक्त का रिकॉर्ड ही देखा जाए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सात मंत्री भ्रष्टाचार के झमेलों में फंसे हैं और अभी तक जांच पूरी नहीं हो पाई है। वे आगे कहते हैं कि जब तक भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी की चलती थी तब तक अनूप सबकी नजर में दूध के धुले थे और अब जब अटल जी राजनीतिक का अवसान हो गया है तो अनूप दागदार हो गए। वे कहते हैं कि अपने दम पर कांग्रेस की गोद से सत्ता छिनने वाली उमा भारती का क्या हश्र हुआ यह सभी जानते हैं। एक तरफ पार्टी में परिवारवाद तेजी से पैर पसार रहा है। लालकृष्ण आडवाणी की बेटी यहां आती है तो पूरी सरकार उनके स्वागत में बिछ जाती है। यहीं नहीं फिल्म निर्माण के नाम पर यहां से लाखों रूपए ले जाती है। जनाधार विहीन नेता स्व. प्रमोद महाजन की बेटी को चुनाव में टिकट दिया जाता है ऐसे ही कई अन्य नेताओं के बीबी-बच्चे लाटरी की तरह चुनाव में पार्टी का टिकट हासिल कर पार्टी संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति के इकलौते वारिस को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के लगभग छह साल के कार्यकाल को देखा जाए तो यहां भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। मंत्रियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने से ही पार्टी का चरित्र बदनाम नहीं हो रहा है बल्कि भारतीय जनता पार्टी के स्वयं सेवक और गैर स्वयं सेवक बहुत सारे विधायक भी ऐसे हैं जिनके नाम थानों के रजिस्टर में और घपला-घोटालों करने वालों की सूची में दर्ज है।
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने और उनके पहले के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने अनूप मिश्रा वाले मामले में जो सात्विक तत्परता दिखाई, वह दूसरे मामलों में नजर क्यों नहीं आती? लोग अब कहने लगे हैं कि अनूप, प्रभात और नरेंद्र तीनों ग्वालियर के हैं और अनूप का बलिदान करने में ग्वालियर की राजनीति चली। प्रभात झा कहते हैं कि मंत्रियों के साथ क्या किया जाए, यह मुख्यमंत्री को तय करना है और विधायकों के खिलाफ अगर कोई शिकायत मिलती है तो वे उन्हें छोड़ेेंगे नहीं। ये बड़े बड़े बयान एक तरफ मगर आज की तारीख में सच यह है कि मध्य प्रदेश की सरकार में कई ऐसे दागी बैठे हैं जिनके खिलाफ जांच हो और सही तरीके से हो तो उन्हें कोई बचा नहीं सकता।
सवाल सिर्फ लोकायुक्त के यहां दर्ज मामलों का नहीं है। सवाल लोकतांत्रिक और सामाजिक सुचिता का है। ऐसे मंत्रियों, भूतपूर्व मंत्रियों और विधायकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है जो कानून के उस पार चले गए हैं मगर सत्ता के गलियारों में उन पर सवाल नहीं उठाए जाते। बड़ी मुश्किल में और लगभग अंधा कर देने वाले सबूत मिले तो भाजपा के विधायक कमल पटेल को अपने बेटे द्वारा की गई एक हत्या के सबूत मिटाने के आरोप में जेल में डाल दिया गया। जांच सीबीआई कर रही है और उसे पूरा शक है कि मरने वाले दुर्गेश को गोली से उड़ाया गया था। कमल पटेल गिरफ्तार हुए जरूर लेकिन अचानक उनका रक्तचाप बढ़ गया और जमानत नहीं मिलने पर भी इंदौर अस्पताल में आराम करते रहे। हालांकि उनकी बीमारी भी गलत साबित हुई और वे अब जेल में हैं। एक मामला छतरपुर जिले में पार्टी की विधायक आशा रानी सिंह का है जो भूतपूर्व निर्दलीय विधायक और डॉन भैया राजा उर्फ अशोक वीर विक्रम सिंह की पत्नी हैं। आसारानी पर अपनी नौकरानी तीजन बाई की मौत के मामले में फरार हैं।
लोकायुक्त के पास जो मामले भेजे गए थे उनमें से कुछ विचित्र हैं। एक तुकोजी राव पवार का है जिनके बारे में मशहूर है कि वे शाम ढलने के बाद ही सारे सरकारी फैसले किया करते है। जिन कमल पटेल की बात अभी की गई वे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में राजस्व मंत्री थे। लोकायुक्त की फाइल में इंदौर के महाबली कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी हैं जो उद्योग मंत्री हैं। श्री विजयवर्गीय पर आरोप है कि इंदौर जिले के नंदा नगर में सुगनी देवी कालेज से लगी जमीन रमेश मेंदोला की समिति को दिलाने में मदद की। रमेश मेंदोला कैलाश विजयवर्गीय के सबसे खास मित्र हैं। कैलाश विजय वर्गीय पर भारत सरकार के महालेखाकार ने करोड़ों रुपए के घपलो का इल्जाम लगाया है जिसमें सिंहस्थ पर्व उज्जेैन के आयोजन में बड़ी आध्यात्मिक हेरा फेरी की बात कही गई है। इसके पहले जब विजय वर्गीय इंदौर के मेयर थे तब उन पर अज्ञात और अदृश्य लोगों को पेंशन बांटने का इल्जाम लगा था। इसी तरह आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह पर उनकी मैनेजर की पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति मंत्री के साथ रात बिताने के लिए दवाब डालता है। खंडवा कोतवाली में महिला ने शपथ पत्र के साथ शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने महिला के पति के खिलाफ प्रताडऩा का मामला दर्ज कर लिया, लेकिन मंत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की गई।
संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम भी हैं। पूर्व मछली पालन मंत्री मोती कश्यप का नाम भी हैं और आयकर छापे के बाद पद से हटे और फिर वापस आए अजय विश्नोई का नाम भी है।
खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जून 2007 में एक बड़े व्यापारिक घराने से डंपर खरीदने और अपनी पत्नी के नाम पर लाभ उठाने का आरोप लगाया गया था। एक और मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे सतना जिले में एक आदिवासी लड़की से बलात्कार के मुजरिम है। वहीं भोपाल की हुजूर सीट से भाजपा विधायक जितेन्द्र डागा भोपाल विकास प्राधिकरण के सीईओ एमजे रूसिया की हत्या के मामले में आरोपी हैं। श्री डागा को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष व विदिशा सांसद सुषमा स्वराज का वरदहस्त प्राप्त है। यही कारण है कि इन दिनों उन्होंने नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर की हैैसियत को ही दांव पर लगा दिया है। उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में यह कहकर सनसनी फैला दी कि गौर को टिकट दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। इसी प्रकार पार्टी गाइड लाइन को दरकिनार कर गृह राज्यमंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने ग्वालियर में अपनी ही सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया। जिसमें सरकार की जमकर किरकिरी हुई है। पूरी गिनती की जाए तो एक दर्जन से भी ज्यादा शिवराज सिंह के मंत्री भ्रष्टाचार के मामले झेल रहे हैं। इनमें भूतपूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर भी हैं जिन्होने गैस राहत के लिए आया पैसा भोपाल को सुंदर बनाने में खर्च कर दिए। खुद शिवराज सिंह का नाम भी इनमें हैं और यह उम्मीद करना बेकार है कि शिवराज सिंह चौहान अपने आपको हटाएंगे या प्रभात झा यह साहस कर पाएंगे कि पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी या आडवाणी से मुख्यमंत्री बदलने के लिए कहें। मध्य प्रदेश में अगर एक तरह से अभियुक्तों की सरकार चल रही है तो भले ही वह ऐसा अकेला प्रदेश नहीं हो लेकिन प्रदेश की एक नागरिक और मतदाता के नाते हम और आप सवाल तो कर ही सकते हैं कि कहां गया चाल, चरित्र और चिंतन का नारा। लेकिन यह पूरा प्रहसन सिर्फ शिवराज सिंह चौहान सरकार के ताकतवर होने से वाबस्ता नहीं है, बल्कि हाल के दिनों में ही भाजपा संगठन की ताकत में इजाफा होने का ज्यादा बड़ा और पुख्ता सबूत है।
पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि नवागत प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने दागी मंत्रियों को कबीना से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए कई बार परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर सत्ता साकेतों पर दबाव डाला था। पार्टी में शुचिता के आग्रह को लेकर उन्होंने लंबे समय से दिल्ली में हाईकमान का मानस बदलने का प्रयास भी जारी रखा था। इसका असर रतलाम में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पहले ही दिन नजर भी आ गया, जब मप्र के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार ने मुख्यमंत्री को दागी मंत्रियों और विधायकों पर कड़ी कार्रवाई करने को कह डाला और उन्हें फ्री हैंड भी दे दिया। जाहिर है गेंद चतुराई से शिवराज के पाले में डाल दी गई थी।
साफ नजर आया कि पूरे मामले की स्क्रिप्ट काफी पहले ही लिख दी गई थी। इसके बाद यह साफ हो गया था कि अब अनूप मिश्रा को मंत्री पद से विदा करने की पूरी जाजम बिछ चुकी है। लेकिन अनूप अकेले ही नहीं है जो नैतिकता की चपेट में आते हैं। पार्टी के पास कुछ समय तक यह तर्क है कि उनके खिलाफ मामले जांच में विभिन्न स्तरों पर हैं और वे सिविल किस्म के मामले हैं। लेकिन बचाव की यह रणनीति भाजपा के कितने काम आएगी यह आने वाला समय में ही साफ हो पाएगा।
मिश्रा के इस्तीफे की खबर आई पार्टी नेताओं के एक बड़े वर्ग ने इस मुद्दे पर सत्ता व संगठन में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की घेराबंदी कर दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दागी मंत्रियों का मुद्दा भारी पड़ता नजर आ रहा है और समय मिल जाने के कारण बाकी दागियों ने बगावत की तैयारी कर ली है। बताते है कि पच्चीस विधायक एकजुट हो गए हैं और अनूप मिश्रा मामले में शिवराज पर हमला करेंगे। जानकारी के मुताबिक अनूप मिश्रा बहुत गुस्से में है और उन्हें बाकी दागी मंत्रियों का साथ मिल गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे बाकी बड़े नेताओं ने भी अनूप मिश्रा की पीठ ठोंक दी है कि आवाज उठाओ शिवराज के खिलाफ। इस गठजोड़ के पास अभी विधायकों की संख्या पच्चीस तक पहुंच चुकी है, जो बगावत करेंगे। बगावती रुख अख्तियार करने से पहले विधायकों का जत्था पहले आलाकमान के पास जाकर अनूप मिश्रा की ससम्मान वापसी की मांग करेगा। मांग नहीं माने जाने पर खुलेआम शिवराज का विरोध किया जाएगा। मिश्रा की वापसी हो न हो, मुख्यमंत्री को हटा कर ही दम लेंगे दागी मंत्री। इसमें चार से छह महीने लग सकते हैं। उधर शिवराज सिंह से नाराज चल रही इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन ने भी उमा भारती की वापसी का समर्थन कर संगठन की मुसीबतें और बढ़ा दी है। उनका मानना है कि जब प्रहलाद पटेल और रघुनंदन शर्मा जैसे लोग पार्टी में आ सकते हैं तब उमा भारती क्यों नहीं? क्योंकि वह खुद पार्टी में आने को कह रही हैं। अब देखना यह है कि मध्यप्रदेश में कुलीनों के कुनबे में शुरू हुई खंदक की लड़ाई किस मुकाम तक पहुंचती है।
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