ऐसा लगता है, देश में बहुत सारे नेता बड़बोलेपन को सुर्खियों में रहने तथा लोकप्रिय होने का मुख्य जरिया मान चुके हंै। भाजपा में पहले प्रमोद महाजन और नरेंद्र मोदी जैसे सेकेंड लाइन के नेता इसके अगुआ थे, जिनमें श्री महाजन अब नहीं है। गांधी परिवार के वरुण गांधी भी इसी रास्ते आगे बढ़ रहे हैं। अब तो सीधे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ही मैदान में हैं और उनका अनुसरण प्रभात झा जैसे नेता खुद को सुर्खियों में रखने के लिए कर रहे हैं। क्या पार्टी में देश तथा प्रदेश के मुखिया से ऐसी उम्मीद की जा सकती है। पार्टी में यदि सभी लोग ऐसा ही रुख अख्तियार कर लें, तब क्या होगा। यदि पार्टी लाइन में रहते हुए कुछ भी अनाप-शनाप बोला जाए तो उसे एक बार स्वीकार भी किया जा सकता था लेकिन हम औरों से अलग होने का दावा करें और फिर बिना सोचे समझे कुछ भी बोलें तो ऐसे चाल, चरित्र और चेहरे को कैसे स्वीकार किया जा सकता है। फिलहाल भाजपा केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए सारे जतन कर रही है और मध्यप्रदेश में उसकी सरकार है।
पहली बार केंद्रीय स्तर पर भाजपा का नेतृत्व नितिन गडकरी कर रहे हैं जिनकी गिनती महाराष्ट्र में थर्ड लाइन के नेता के रूप में होती थी। मध्यप्रदेश में भी भाजपा की बागडोर प्रभात झा जैसे नेता के हाथ में है जो भाजपा में कभी मीडिया प्रभारी हुआ करते थे। इस मुकाम तक पहुंचने से पहले ये दोनों नेता राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर पर बहुत लोकप्रिय नहीं थे। इस आधार पर ही पार्टी नेता दावा करते हैं कि भाजपा में नेतृत्व ऊपर से थोपा नहीं जाता और न ही पुश्तैनी साख की बदौलत किसी को कुर्सी मिलती। यहां कोई भी मामूली कार्यकर्ता अपनी मेहनत व क्षमता के बलबूते पार्टी के शिखर पर पहुंच सकता है। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह तथा सुषमा स्वराज आदि नेता इसके अनेक उदाहरण हैं लेकिन इनमें से किसी ने भी चर्चित होने के लिए नितिन गडकरी तथा प्रभात झा जैसी भाषा का प्रयोग नहीं किया। श्री गडकरी अपने कुछ बयानों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुके हैं और इसकी वजह से पार्टी को बचाव की मुद्रा में रहना पड़ा है।
इधर प्रदेश में प्रभात झा श्री गडकरी के रास्ते चलकर सुर्खियों में हैं। बड़बोलेपन के कुछ उदाहरण भोपाल गैस त्रासदी कांड के बारे में न्यायालय ने फैसला दिया तो भोपाल से लेकर दिल्ली तक हंगामा खड़ा हो गया। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश से बाहर थे। इधर पालीटेक्निक चौराहे पर एक सभा को संबोधित करते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने घोषणा कर डाली कि गैस पीडि़तों को मुआवजा केंद्र सरकार घोषित नहीं करेगी तो राज्य सरकार अपने बजट में इसका प्रावधान करेगी। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में भी कहा कि इस संबंध में उनकी मुख्यमंत्री श्री चौहान से बात हो गई है और उन्होंने पूरी जवाबदारी से यह बात कही है। लेकिन बाद में जब ऐसा नहीं हुआ तो उनके पास कोई जवाब नहीं था और पार्टी व सरकार की फजीहत हुई सो अलग। दूसरी बार श्री झा ने न्यायालय को ही अपने लपेटे में ले लिया। उन्होंने कहा कि कोर्ट को समाज के हिसाब से चलना चाहिए, समाज कोर्ट के हिसाब से नहीं चलेगा। उनका कहना था कि समाज से कोर्ट है, कोर्ट से समाज नहीं। बाद में न्यायालय ने उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी कर दिया और उन्हें क्षमा मांगना पड़ी। हाल ही में इंदौर में प्रभात झा ने बड़बोलेपन की सारी हद ही पार कर दी और देश की सुरक्षा करने वाले बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवानों को डकैत कह दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सेना के ये जवान हथियारों की तस्करी तक करते हैं और उन्हें नक्सलियों तक पहुंचाते हैं। हालांकि अगले ही दिन उन्होंने फिर जवानों से माफी मांग ली।श्री झा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश के पूर्व मुख्यंमत्री दिग्विजय सिंह को नक्सलियों का एजेंट कह चुके हैं जिस पर श्री सिंह उन्हें कोर्ट का नोटिस दे चुके हैं।कहने का तात्पर्य यह कि संगठन के मुखिया इस तरह की बातें करके कार्यकर्ताओं को क्या संदेश देना चाहते हैं। यदि सभी नेता व कार्यकर्ता इसका अनुसरण करने लगें तो पार्टी जिस चाल, चरित्र और चेहरे का दावा करती है, उसका क्या होगा?
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