शुक्रवार, दिसंबर 09, 2011

...नियमित हो गए तो कौन करेगा बेगारी


-कोर्ट और सरकार के आदेशों की भी अवहेलना
  1. -शोषण की अफसरशाही मानसिकता दैवेभो के नियमितीकरण में बनी बाधक
-कर्मचारी नेताओं ने लगाए आरोप
भोपाल। प्रदेश के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी भले ही वर्षों से नियमितीकरण की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन विभागीय अधिकारियों की  अफसरशाही मानसिकता इसमें बाधक है। कोर्ट और सरकार के द्वारा समय-समय पर दिए गए दिशा निर्देशों का क्रियान्वयन नहीं होने के पीछे भी लड़ाई लड़ रहे कर्मचारी विभागीय अधिकारियों को ही जवाबदार ठहरा रहे हैं।
  मध्यप्रदेश सरकार का जल संसाधन विभाग हो अथवा लोक निर्माण विभाग अथवा प्रदेश के नगरीय निकाय। शायद ही कोई ऐसा उपक्रम हो जहां दैवेभो कर्मचारी शासकीय दायित्वों का निर्वहन न कर रहे हों। बावजूद इसके कि पिछले 20 और 30 वर्ष की सेवा में रहते हुए भी यह सरकार के नियमित कर्मचारी नहीं बन पाए। हालांकि हक की इस लड़ाई में न्यायालय इन कर्मचारियों के पक्ष में रहा और मानवीयता के साथ ही कर्मचारी अधिकारों का हवाला देते हुए सेवाएं नियमित करने के आदेश भी दिए। इसके परिपालन में राज्य सरकार ने भी सहमति जताई लेकिन विभाग में पदस्थ अधिकारियों ने पानी फेर दिया। अफसरों का रवैये से जहां कोर्ट की अवमानना हुई वही घोषणा पत्र के मुताबित सरकार की मंशा ही साकार हुई। जबकि उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार व स्टेट बैंक ऑफ मैसूर के कर्मचारी राजशेखर रेड्डी के मामले में सुप्रीम कोर्ट यह कह चुका है कि यदि कोई कर्मचारी एक कैलेंडर वर्ष नहीं, दो कलेंडर वर्ष में भी 240 दिनों की सेवा पूर्ण करता है तो उसे स्थायी रोजगार देना पड़ेगा। बावजूद इसके राज्य में कई कर्मचारी ऐसे हैं जो 7 हजार से अधिक दिनों की सेवाएं भी पूरी कर चुके हैं। लेकिन उसके बाद भी नियमितीकरण का संघर्ष जारी है।
 इनका कहना है।
- कर्मचारियों की लड़ाई लंबी है। सुप्रीम और हाईकोर्ट भी इन दैवेभो के पक्ष में निर्णय सुना चुके हैं लेकिन इसके बाद भी यह नियमित हो पाए इसके पीछे शोषण विभागीय अधिकारियों का नकारात्मक रवैया ही जबावदार है।
शोएब सिद्दकी, प्रांताध्यक्ष मध्यप्रदेश पीएचई कर्मचारी संघ
-यदि कोई कर्मचारी 18 या 20 वर्ष नहीं 90 दिनों की सेवा पूर्ण करता है तो वह नियमित होने का अधिकारी है। लेकिन यहां तो उपेक्षा और असम्मान के साथ जीवन-यापन करते हुए दैवेभो को 30 वर्ष हो गए हैं। यदि आदेशों को धता बताया जा रहा है तो इसके पीछे विभागीय अधिकारियों की यह मंशा है कि यदि यह अधिकार संपन्न हो गए तो घर की बेगारी कौन करेगा।
अशोक पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष मप्र कर्मचारी मंच
-पिछले कई वर्षों से दैवेभो कर्मचारी शोषण के शिकार हैं। विभागीय अधिकारियों की शोषक वादी मंशा नियमित सेवा में सबसे बड़ी बाधा है।
अशोक वर्मा, प्रांताध्यक्ष नगर निगम नगर पालिका कार्यभारित कर्मचारी संघ

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