शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

पत्रकारों को भी अपने पराये में बांट रहे हैं भाजपा के मैनेजर

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भले ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सहयोगियों को साथ लेकर चलने की नसीहत दी हो लेकिन यहां जिस तरह से पत्रकारों के साथ भेदभाव किया जा रहा है उससे एक बात तो साफ है कि भाजपा दलालों और मैनेजरों की पार्टी है और अब वही होकर रहेगी. कार्यकर्ता तो छोड़िये उन्होंने पत्रकारों तक को अपने पराये में बांट दिया है.
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यहां कवर करने आये पत्रकारों के साथ होनेवाले व्यवहार को देखकर लगाया जा सकता है. शुरूआत दिल्ली से चलने के समय से ही होती है. दिल्ली से जो पत्रकार यहां कवर करने के लिए आनेवाले थे उनको कहा गया कि आने जाने का खर्चा आपका, लेकिन रुकने और खाने का खर्चा हमारा. इसी व्यवस्था के तहत पत्रकारों ने टिकट के लिए अपना पैसा जमा करवा दिया. लेकिन यहीं से पार्टी के मीडिया मैनेजरों ने अपना खेल शुरू किया. उन पत्रकारों को छांटकर अलग कर लिया गया जो भाजपा मीडिया सेल में काम करनेवाले लोगों के नजदीकी थे. उनका टिकट कन्फर्म करवाया गया और इंदौर पहुंचने पर अच्छे होटल में रुकने की व्यवस्था की गयी. लेकिन जो मीडिया सेल के नजदीकी लोग नहीं थे, वे रामभरोसे इंदौर पहुंचे भी तो उन्हें यहां एक दोयम दर्जे के होटल में ठूंस दिया गया.
भाजपा मीडिया सेल के चहेते पत्रकारों को आलीशान लेमन ट्री होटल में रुकवाया गया है और उनके खाने तथा पीने की पर्याप्त व्यवस्था की गयी है. वहीं दूसरी ओर भाजपा मीडिया सेल की नजर में दोयम दर्जे के पत्रकारों को एक दोयम दर्जे के ही सराय सरोवर पोर्टिको में ठूंस दिया गया है जहां खाना भी बाहर से खाकर आना मजबूरी है. पार्टी में सबको एक नजर से देखने का आह्वान करनेवाले गडकरी के नाक तले पत्रकारों के साथ ही ऐसा भेदभाव हो रहा है जिसे लेकर "दोयम दर्जे" की श्रेणी में रखे गये पत्रकार खासे परेशान है. भेदभाव सिर्फ आवभगत तक ही नहीं है. प्रेस ब्रीफिंग में भी रविशंकर प्रसाद सिर्फ अपने चहेते पत्रकारों को सवाल पूछने का मौका दे रहे हैं और अंदर बाहर की खबरें भी बता रहे हैं. वहीं दूसरी ओर जो पत्रकार बड़े उत्साह से सिर्फ इस इवेन्ट को कवर करने आये हैं उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार किया जा रहा है. उनका कसूर सिर्फ इतना है कि वे भाजपा मीडिया सेल के चहेते पत्रकार नहीं है.
ऐसे पत्रकारों की शिकायत नाजायज नहीं है. भाजपा का मीडिया सेल पूरी तरह से मैनेजरों के हवाले है और वहां भेदभाव चरम पर रहता है. खुद रविशंकर प्रसाद और अरुण जेटली जैसे नेता भी छोटे पत्रकारों से बात करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. मीडिया सेल इन्हीं नेताओं के चहेतों के पास है इसलिए वे जिसे चाहते हैं उसी को भाजपा के अंदर बाहर की खबरों तक पहुंचने का सौभाग्य मिल पाता है अन्यथा तो उन्हें प्रेस कांफ्रेस में सवाल भी नहीं पूछने दिया जाता है. मीडिया सेल के संजय मयूख हों या फिर अरुण जेटली के करीबी श्रीकांत, ये लोग मीडिया में अपने प्रिय मित्रों को छोड़कर बाकी के साथ दुश्मन जैसा ही व्यवहार करते हैं. यहां इंदौर आये पत्रकार भाजपा की इस भेदभाव वाली नीति से परेशान तो हैं लेकिन अब भाजपा के बारे में तो वे लिखें लेकिन उनके खुद के बारे में लोगों को कैसे बताएं कि भाजपा के मीडिया मैनेजर उनके साथ क्या व्यहार कर रहे हैं? भेदभाव के शिकार ये पत्रकार बता रहे हैं कि स्थानीय भाजपा इकाई ने तो व्यवस्था ठीक की है लेकिन दिल्ली से आये मैनेजर ही चीन्ह-चीन्ह कर पत्रकारों को अपमानित और सम्मानित कर रहे हैं. इन पत्रकारों का कहना है कि अगर भाजपा ने अपना रवैया ठीक नहीं किया तो वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहिष्कार भी कर सकते हैं.

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