सभी माता-पिता का सपना होता है कि उनका लाडला पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो सके, उसे एक अच्छी नौकरी मिले और बुढ़ापे में वो उनका सहारा बन सके। इसके लिए वो अपने जीवन की कमाई अपने बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर देते हैं. लेकिन ज़रा सोचिये कि इतनी मशक्क़त के बाद अगर प्रतिफल शून्य हो तो क्या होगा?
हमारे देश में इतने उच्च शिक्षण संस्थान हैं कि उनकी गिनती करना भी मुश्किल है। इन उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र जब दाखिला लेते हैं तो उनकी आँखों में प्लेसमेंट को लेकर बड़े-बड़े सपने होते हैं, लेकिन अगर वो सपने टूट जाएँ तो कैसा लगेगा?
जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे ही संस्थान की जिसके छात्रों ने दाखिले के वक्त ऐसे ही बड़े-बड़े सपने संजोये थे मगर वे सपने अब टूट कर बिखर चुके हैं। ग्रेटर नोएडा के नोलेज पार्क स्थित इस प्रबंधन संस्थान का नाम है 'एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी'। इस प्रबंधन संस्थान के छात्रों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। एनसीआर के इस बहुप्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में दाखिले के वक्त छात्रों को प्लेसमेंट के बड़े-बड़े सपने दिखाए गए थे और छात्रों ने भी अपनी आँखों में एक अच्छी नौकरी के सपने संजोये थे। और संजोते भी क्यों न! आखिर दाखिले के लिए उन्होंने इस बहुप्रतिष्ठित संस्थान में फीस के रूप में सात लाख रुपये के लगभग एक बड़ी रकम जो चुकाई थी। लेकिन इन छात्रों के सभी सपने समंदर किनारे बने रेत के घर की तरह बिखर चुके हैं । »»æñÚUÌÜÕ ãñU कि शिक्षा के क्षेत्र में एपीजे देश की एक जानी मानी सोसायटी है और एपीजे के बहुत सारे संस्थान देश में चल रहे हैं।
हाल ही में मेरी यहाँ के बहुत से छात्रों से मुलाक़ात हुई तो इन छात्रों का दर्द सुनकर लगा के शायद इस दर्द से पूरे देश को अवगत होना चाहिए। एक बड़ी रकम लगाकर छात्रों ने इस प्रबंधन संस्थान में दाखिला तो ले लिया मगर प्लेसमेंट के नाम पर संस्थान में सिर्फ छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ से ज्यादा और कुछ नहीं हो रहा है। संस्थान के अधिकारियों के जवाब भी बड़े हास्यास्पद है। एपीजे के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर का कहना है कि प्लेसमेंट के लिए कैम्पस में कंपनियों को बुलाने के लिए उनके एचआर को काफी पैसे खिलाने पड़ते हैं लेकिन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पैसा उपलब्ध नहीं कराते हैं तो वहीँ संस्थान के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर का कहना है कि कॉलेज पैसा खर्च करने कि स्थिति में नहीं है क्योंकि बजट नहीं है। अगर हम इनके जवाबों को कुछ देर के लिए सही मान ले तो प्रथम एवं द्वितीय दोनों वर्षों के छात्रों को मिलाकर यहाँ करीब २०० छात्र हैं और सभी ने सात लाख रूपये फीस दी है, तो सवाल यह उठता है कि इतना सारा पैसा कहाँ गया?
यदि कोई छात्र इस पर आवाज़ उठाता है तो उस पर कॉलेज प्रशासन की तरफ से फाइन लगा दी जाती है और कॉलेज प्रशासन उस छात्र को परीक्षा में न बैठने की धमकी तक दे डालता है। सबसे ज्यादा परेशान संस्थान के वे छात्र हैं जिन्होंने शिक्षा के लिए लोन लिया है, इन छात्रों कहना है कि कॉलेज प्लेसमेंट के लिए कुछ नहीं कर रहा है और ऑफ कैम्पस ठीक ठाक नौकरी नहीं मिल रही है अगर यही हाल रहा तो हम अपने लोन की किश्त कैसे भरेंगे। प्रबंधन ने तो मोटी फीस वसूल कर ली और नौकरी दिलवाने के नाम पर छात्रों के हाथ में आश्वासन का झुनझुना पकड़ा दिया.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन छात्रों का भविष्य अधर में नहीं लटका हुआ है? क्या यह देश के सिर्फ एक उच्च शिक्षण संस्थान की दुर्दशा है अथवा ऐसे और भी संस्थान हैं? क्या ये शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं है? क्या इस पर सरकार को कोई कड़ा कदम नहीं उठाना चाहिए या ये संस्थान चलाने वाले सिर्फ अपनी तिजोरियां ही भरते रहेंगे और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे?
शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010
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