शनिवार, मार्च 06, 2010

यह है धारा 370 की असलियत



अब जरा एक बार फिर धारा 370 की बात हो जाए। भारतीय संविधान में यह धारा जब जोड़ी गई थी और जम्मू कश्मीर को धारा 238 के तहत केंद्र राज्य संबंधों की सभी शर्तों से अलग कर दिया गया था तो इस धारा की पहली पक्ति में लिखा था कि यह एक अस्थायी प्रावधान है और इसके तहत भारत की संसद सीमित मामलों में ही कश्मीर में भारत में संवैधानिक नियम और प्रावधान लागू करवा सकेंगे। उस समय राष्ट्रपति ने जम्मू कश्मीर के महाराज हरि सिंह द्वारा पांच मार्च 1948 को भारत में विलय के किए गए समझौते को ध्यान में रखते हुए और कश्मीर की विशेष परिस्थिति को देखते हुए प्रावधान किया था कि रक्षा, विदेश नीति वित्त और संचार के अलावा दूसरे और अन्य कानूनों का तब तक पालन नहीं करवा सकेगी जब तक राज्य की विधानसभा उसे मंजूरी नहीं दे दे। इस तरह के विशेषाधिकार हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड को भी दिए गए थे लेकिन कश्मीर का मामला इसलिए अलग है क्योंकि पाकिस्तान भी उस पर हक जमा रहा है। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और कश्मीर के सबसे ताकतवर नेता शेख अब्दुल्ला के बीच हुई बातचीत में इस धारा को जारी रखने के बारे में आम सहमति हुई थी। एक सर्वव्यापी गलतफहमी यह है कि धारा 370 तब तक खत्म नहीं की जा सकती जब तक जम्मू कश्मीर की विधानसभा दो तिहाई बहुमत से इस बारे में प्रस्ताव पास नहीं कर दे। सच यह है कि भारत के राष्ट्रपति, और यह इसी धारा की भाषा है, जब यह पाए कि इस धारा की उपयोगिता खत्म हो गई है तो एक अधिसूचना जारी कर के बगैर संसद की सहमति के इस धारा को हमेशा के लिए निरस्त कर सकते हैं। इसके लिए हमे सुब्रहमण्य स्वामी को राष्ट्रपति बनाना होगा जो हमेशा कहते हैं कि धारा 370 एक रद्दी का टुकड़ा है और इसे रद्दी की टोकरी में ही डालना चाहिए। अपन न संघ परिवार के स्वयं सेवक हैं और न गडकरी की टीम में शामिल है। फिर भी कश्मीर मेरे सबसे प्रिय स्थानो में से एक हैं और वह वहां की अप्रतिम सुंदरता के कारण नहीं बल्कि वहां के लोगों की सरलता और किसी को भी अपना बनाने के लिए तत्पर रहने के स्वभाव के कारण है। मैं भूल चुका हूं कि कितनी बार कश्मीर के लगभग हर कोने में गया हूं। कारगिल का युद्ब देखा है, उस युद्ब के बाद नियंत्रण रेखा पर रहने वाले अभागे नागरिकों की दुर्दशा देखी है, यह भी देखा है कि एक दुकान से सामान खरीदने के बाद पांच सौ रुपए में से बचे हुए पैसे लेना भूल गया था तो टेक्सी सर्विस से मेरे होटल का पता लगा कर दुकानदार वापस करने आया और साथ में उपहार के तौर पर कहवा का एक पैकेट भी ले कर आया। सरल और सुखी लोग है। मगर इस राजनीति का क्या करें जो इस धारा को मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत चलाए रखना चाहती है। कश्मीर घाटी में मुस्लिम बहुल आबादी है और हमारे नेताओं का मानना यह है कि धारा 370 हटी तो देश भर के मुस्लिम नाराज हो जाएंगे। सच यह है कि भारत के दो फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने कश्मीर देखा भी नहीं है। कहानी बहुत सीधी सी है। जम्मू कश्मीर का भारत में विधिवत विलय 26 अक्तूबर 1947 को हुआ था और उसी दिन से इसे देश के बाकी राज्यों की तरह हो जाना चाहिए था। आखिर गोवा का विलय तो 1960 में हुआ है और वह भी सैनिक हमले के बाद। मगर नेहरू जी ने कश्मीर की कमान शेख अब्दुल्ला को सौप दी और महाराजा हरि सिंह को धीरे-धीरे निरस्त करने का प्रयास करने लगे। शेख अब्दुल्ला ने एक कदम आगे बढ़ कर इस विलय को राज्य विधानसभा से मान्यता दिलवाने का फैसला किया। उनके इरादे चाहे जो रहे हो लेकिन कश्मीर की विधानसभा अकेली विधानसभा है जो केंद्र के साथ राज्य के रिश्ते तय करती है। धारा 370 जैसा कि पहले कहा एक अस्थायी धारा है और कश्मीर को धर्म निरपेक्षता के नाम पर इसलिए कलंक माना जा सकता है क्योंकि वहां जो विशेषा धिकार दिए गए हैं वे वहां की मुस्लिम बहुलता के कारण दिए गए हैं। भारत सरकार उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है मगर कश्मीर के मामले में उनके भी हाथ बंधे हुए है। आपातकाल धारा 352 के तहत एक सीमित मामले में कश्मीर में लागू किया जा सकता है। धारा 370 जम्मू और कश्मीर को अपना संविधान बनाने और अपना निजी ध्वज तक बनाने की इजाजत देती है। पूरे देश में लागू शहरी भूमि कानून 1976 में लागू हुआ था मगर कश्मीर के यह लागू नहीं हुआ। कश्मीर में तो अगर कोई कश्मीरी महिला किसी गैर कश्मीरी पुरुष से शादी कर ले तो कश्मीरी जमीन से उसका अधिकार हमेशा के लिए छिन जाता है। भारत के भूतपूर्व विदेश एम सी छागला संयुक्त राष्ट्र को कह चुके हैं कि यह एक अस्थायी धारा है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम अहमद और जीएम सादिक भी इस धारा को कश्मीर के विकास में बाधा मान रहे थे और इसे हटाने की बात कर रहे थे। उन्हें मालूम था कि जम्मू कश्मीर का जो अपना संविधान है उन्हें भी धारा 3 और 5 के तहत कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग करार दिया गया है। हम कश्मीर में रक्षा पर लगभग तीन करोड़ रुपए रोज खर्च करते हैं। साल के ये दस हजार करोड़ रुपए हो जाते हैं और इतने में लेह और लद्दाख जैसे इलाकों में जहां दूर दूर तक न सड़के हैं, न अस्पताल हैं, विकास के बहुत सारे काम किए जा सकते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस कमीनी कांग्रेस ने देश का कबाड़ा कर दिया

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    1. हमें मिलकर जवाब देना होगा और हम करारा जवाब देंगे

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