शनिवार, मार्च 06, 2010

सड़क पर जारी है सरकारी लूट

टोल और आरटीओ बेरियरों पर कुप्रथा बनी प्रथा

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ों में मठ्ठा डालने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। यह प्रयास आगामी चार वर्षो में कितना कारगर साबित होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन शिष्टाचार का रूप अख्तियार कर चुका भ्रष्टाचार दफ्तरों की टेबलों से होते हुए सड़क पर आ गया है। जिस पर कई शिकायतों के बाद भी अब तक लगाम नहीं लग पाई है। वह भी तब जब प्रदेश के मुख्य सचिव भी इसके शिकार बन चुके हैं। देश भर में परिवहन का सबसे बडा साधन सड़क मार्ग ही माना जाता है। सड़कों पर दौडते वाहनों के सामने सबसे बडी समस्या के रूप में परिवहन, सेलटेक्स के साथ ही साथ टोल नाके बनकर उभरे हैं। इन वसूली वाले नाकों में जब चाहे तब वाहनों से अवैध वसूली की शिकयतें आम हैं। सरकारें इन शिकायतों पर ध्यान नहीं देती हैं, परिणामस्वरूप सड़कों पर विवाद की स्थिति बनती रहती है। अवैध वसूली का सबसे बड़ा अड्डा अंतरप्रांतीय परिवहन जांच चौकियां हैं। इन चौकियों को बाकायदा किन्तु अघोषित तौर पर ठेके पर दिया गया है। मध्यप्रदेश की परिवहन जांच चौकियों में हर दिन करोड़ों रूपयों की अवैध वसूली की जाती है। प्रदेश में सबसे अधिक आय और बेनामी आय वाली चौकियों में बडवानी की सेंधवा, मुरेना और सिवनी जिले की खवासा परिवहन जांच चौकी सदा से ही चर्चाओं में रही है।इन परिवहन जांच चौकियों में सारा कारोबार रिमोट कंट्रोल से चलता है। अमूमन हर परिवहन, सेलटेक्स की जांच चौकियों में चौकी के दोनों ओर वाहनों की कतार देखते ही बनती है। जैसे ही इन चौकियों के आस पास कोई लाल पीली बत्ती वाली गाड़ी दिखाई पड़ती है, रिमोट से चलने वाली घंटी बजाते ही चौकियों के अंदर का माजरा ही बदल जाता है। नंबर दो में चलने वाले काम नंबर एक में तब्दील हो जाते हैं।इन चौकियों में कर्मचारियों की मेस देखने लायक होती है। यहां समिष और निरामिष लजीज भोजन की उम्दा व्यवस्था होती है। मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, परिवहन सचिव, परिवहन आयुक्त आदि अगर प्रदेश की जांच चौकियों का औचक निरीक्षण कर लें तो वे पाएंगे कि एक समय में किसी भी चौकी में कुल तैनाती का महज चालीस फीसदी अमला ही मौजूद होता है। एक बात है, इन चौकियों में अपने कर्मचारियों के प्रति पूरी ईमानदारी बरती जाती है। माह के अंत में जब चौथ वसूली का हिसाब किताब होता है, तो सभी को ईमानदारी के साथ उसका हिस्सा दिया जाता है। मजे की बात तो यह है कि पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में जाने की होड़ सी लगी होती है। इसका कारण यह है कि परिवहन विभाग में अवैध कमाई का सबसे अच्छा और फूलप्रूफ काम है।मध्य प्रदेश में सेंधवा की परिवहन जांच चौकी को कंप्यूटरीकृत किया गया है। इसके अलावा खवासा सहित अन्य परिवहन जांच चौकियों को भी इसी तरह कंप्यूटरीकृत करने का प्रस्ताव एक दशक से भी अधिक समय से लंबित है। इसका कारण यह है कि अगर इन्हें कंप्यूटरीकृत कर दिया गया तो यहां पदस्थ कर्मचारियों की अवैध कमाई को लकवा मार सकता है। यही कारण है कि शासन के प्रस्ताव के बावजूद भी इनका कंप्यूटरीकृत जानबूझकर लंबित रखा जा रहा है। गौरतलब होगा कि सिवनी जिले के खवासा में सालों पहले ग्यारह लाख रूपए की लागत से कंप्यूटरीकृत जांच चौकी का प्रस्ताव लाया गया था, जिसे आज तक अमली जामा नहीं पहनाया गया है। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य के घरेलू उपयोग के सामान के वाहन को उन्ही के सूबे एमपी के मुरैना की परिवहन जांच चौकी में रोककर वाहन चालक के साथ बदसलूकी करने का मामला प्रकाश में आया है। विडम्बना ही कही जाएगी कि एक सूबे के मुखिया के घरेलू उपयोग के सामान को लेकर आने वाले वाहन को परिवहन कर्मियों द्वारा अंतर्राज्यीय सीमा पर रोककर सरेआम चौथ वसूली और बदतमीजी की जाती है, और सूबे में शासन आंखे मूंदे बैठा रहता है। जब प्रशासनिक मुखिया के साथ इस तरह का हो रहा हो तब फिर आम आदमी के साथ क्या होता होगा इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खडे हो जाते हैं।गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ आदि सूबों की सीमाओं पर सेंधवा, नयागांव, खवासा, दतिया, मुरेना, झाबुआ, चाक सोहागी, हनुमना, पिटोल, बुरहानपुर, खिलचीपुर, रजेगांव, सिकंदरा, शाहपुर, चिरूला, सतनूर, बोनकट्टा आदि स्थानों पर अंतराज्यीय परिवहन जांच चौकियां स्थापित हैं। इनमें से ड़ेढ दर्जन से ज्यादा चौकियों में परिवहन और सेल टेक्स विभाग द्वारा कंप्यूटर लगाकर जोडने की कवायद सालों से की जा रही है।इतना ही नहीं देश भर में सडक मार्ग में पडऩे वाले टोल नाकों पर भी अवैध वसूली जबर्दस्त तरीके से जारी है। अनेक स्थानों पर समयावधि पूरी होने के बाद भी आपसी सांठगांठ के चलते बाकायदा दादागिरी के साथ वाहन चालकों की जेब पर डाका डाला जाता है। बनाओ, चलाओ, वसूलो फिर शासन को सौंप दो (बीओटी) के आधार पर बनने वाली सडकों की राशि ठेकेदार द्वारा वसूली जाती है। इन सडकों या पुलों की राशि वसूलने में ठेकेदारों द्वारा मनमानी बरती जाती है।भर में लोक निर्माण विभाग, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, नेशनल हाईवे अथारिटी आदि द्वारा दिए गए ठेकों पर जब तब विवाद की स्थिति निर्मित होती रहती है। इन नाकों पर ठेकेदार द्वारा मनमानी दरों पर वाहनों से टोल टेक्स वसूला जाता है। हद तो तब हो जाती है जब रसीद मांगने पर ठेकेदार द्वारा अनाधिकृत रसीदें दी जाती हैं। केंद्र सरकार के भूतल परिवहन विभाग द्वारा रस्म अदायगी के लिए 11 जून 2008 को देश के हर सूबे की सरकार को एक पत्र लिखकर इन अनियमितताओं और शिकायतों की ओर ध्यान आकर्षित कराया था।केंद्र और राज्य सरकारों में बैठे जनसेवकों की अर्थलिप्सा और अपने अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए साम, दाम दंड भेद की नीति अपनाई जा रही है। सरकार द्वारा सांसद, विधायक, सरकारी वाहनों के साथ ही साथ अधिमान्य पत्रकारों के वाहनों को टोल टेक्स से छूट प्रदान की है, किन्तु टोल नाकों में बैठे ठेकेदार के गुर्गों द्वारा पत्रकारों के साथ भी अभद्र व्यवहार करना एक प्रिय शगल बन गया है। कुल मिलाकर जब एक सूबे के प्रशासनिक मुखिया के घर का सामान ले जा रहे वाहन के साथ हुए हादसे के बाद भी परिवहन विभाग की मनमानी जारी रहने पर यही कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की आवश्यकता है।

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