मंगलवार, मार्च 09, 2010

भगवान और इंसान में समझे फर्क

खुदा का जिक्र करें या तुम्हारी बात

करेंहमेंतो इश्क से मतलब किसी की बात करेंफरिश्ते तुम भी नहीं, फरिश्ते हम भी नहींहम आदमी हैं तो फिर आदमी की बात करें
इन दिनों क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को न जाने क्या-क्या बताकर भारत रत्न देने की बात की जा रही है। इससे मुझे कोई आपत्ति भी नहीं। लेकिन सचिन की तारीफ में लोग न जाने क्या कह देते हैं जिसका उन्हें भी पता नहीं होता, इस पर मुझ जैसे लोगों को ऐतराज हो सकता है। भगवान शब्द का इतना लापरवाह इस्तेमाल मैंने पहले कभी नहीं देखा। एक साथ इतने सारे चलते-फिरते भगवान देखने का सौभाग्य भी इससे पहले कब मिला था, याद नहीं आता! जैसे ही 'थ्री ईडियट्सÓ सुपरहिट हुई, आमिर खान को 'गॉडÓ की पदवी दे दी गई। मैंने अपनी आंखों से करीना कपूर को आंखें फैलाकर कंधे उचकाते हुए 'ही इज गॉडÓ कहते हुए देखा। उसके बाद 'माई नेम इज खानÓ के बॉक्स ऑफिस पर सफल रहने की खबर आई तो एक टीवी चैनल ने आनन-फानन में शाहरुख खान को भी ईश्वरत्व बख्श दिया। अमिताभ और रजनीकांत को पहले से ही बाकायदा मंदिर में बिठाकर पूजा जा रहा है। और इधर सचिन तेंदुलकर को भगवान घोषित करने का तो ये शायद दसवां या ग्यारहवां मौका है।इन्हीं सचिन की आलोचना की भेड़चाल भी मैं देखता रहा हूं। क्या-क्या उनके खिलाफ नहीं कह दिया गया? इधर वही आलोचक प्रशंसा की भेडिय़ाधसान में शामिल दिख रहे हैं। पिछले हफ्ते हर दूसरे चैनल पर कोई पूर्व आलोचक सचिन के कसीदे पढ़ते पाया गया। कमाल के विशेषण उछाले गए। तारीफों के ऐसे सोते फूटे कि शब्द कम पड़ गए। ऐसा लगा कि कृष्ण ने अपना जाज्व्ल्यमान विराट रूप दिखा दिया हो और बेचारा मीडिया हाथ बांधे विस्मित चकित विस्फारित खड़ा हो!सचिन तेंदुलकर, आमिर, अमिताभ और शाहरुख बेशक अपने अपने क्षेत्रों के सिरमौर हैं। उनका काम यकीनन काबिलेतारीफ है। सचिन तो खासतौर पर अद्भूत और अनुपम हैं। उनमें बाल ठाकरे जैसों की आंधी के आगे निडर डटे रहने की कुव्वत है। अपने लगभग बीस साल के कॅरियर में घोटालों और किस्से-कहानियों का कोई भी दाग उनके दामन पर लगा हो, याद नहीं आता। क्रिकेट के आंकड़ों की किताब में उनकी तूती बोलती है। लेकिन इसके बावजूद उन्हें भगवान कहा जाता है तो मैं असहज हो जाता हूं। क्यों हो जाता हूं, यही बताने की कोशिश मैं आज कर रहा हूं।दोस्तों, अपने जीवन में आस्तिकता और नास्तिकता के कई पड़ावों से गुजरने के बाद आज की तारीख में मैं लगभग आधा नास्तिक हूं। पर इसके बावजूद मुझे लगता है किसी लोकप्रिय आदमी को भगवान बताना ईश्वर की संकल्पना का दुरुपयोग है। ऐसा करना ईश्वर की अवधारणा का अपमान जैसा लगता है।मेरा पक्का विश्वास है कि ईश्वर शब्द एक सीमा तक ही परिभाषेय है। ईश्वर को अजर, अमर, अजन्मा, सर्वव्यापक, शाश्वत, निराकार, निर्विकार जैसे शब्दों में बांधने वाली अमूर्त और प्राचीन परिभाषाओं का मैं कभी कायल नहीं रहा । लेकिन इस सबके बावजूद ईश्वर की परिकल्पना मुझे बहुत मोहित करती है। (याद है वह प्रसिद्ध दार्शनिक उक्ति- - मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता, लेकिन मैं जब भी किसी स्त्री के साथ सोता हूं, मुझे ईश्वरीय आनंद मिलता है! ! ! )सच कहूं तो 'ईश्वरÓ मुझे संसार का सबसे सुंदर शब्द मालूम होता है। मुझे लगता है कि दया, क्षमा, करुणा, न्याय, दीनबंधुत्व और सहयोग जैसे श्रेष्ठ मूल्यों को मूर्तिमान बनाने के लिए ईश्वर की कल्पना की गई होगी। इस अर्थ में ईश्वर शब्द संभवत: सर्वोच्च प्रशंसा का प्रतीक भी है। इतना प्रशंसनीय, इतना सराहनीय कि बस उससे आगे बखान के लिए शब्द ही न बचे। ईश्वर कह दिया तो बस अब और कुछ नहीं।दिक्कत बस यही है कि इतने शानदार विशेषण को चिल्लर के भाव खर्च नहीं किया जाना चाहिए। भगवान शब्द प्रशंसा की अति है। प्रशंसा की अति भी आलोचना की अति जितनी बुरी चीज है। क्रिकेट दोनों से पीडि़त रहा है। टीम जीत गई तो कैप्टन भगवान है, हार गई तो वह रातोरात शैतान है। फिर अगले दिन उसका मकान फूंक दिए जाने की खबर छपती है। पिछले दिनों जब हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा हिन्दुस्तान कार्यालय में आए तो उन्होंने भी सचिन को भगवान कहे जाने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि अगर सचिन दो-तीन बार कम रन बना कर आउट हो गया तो यही मीडिया और यही लोग उसे पाताल में पहुंचा देंगे।याद रहे कई विचारक क्रिकेट को एक झूठी राष्ट्रीय उत्तेजना बताते हैं। वे इस खेल में औपनिवेशिक विरासत की गंध पाते हैं। कुछ को इसमें मैच फिक्सिंग के माफिया और कारोबारी प्रचार तंत्र का खेल नजर आता है। बहुत से लोग क्रिकेट को युवा चेतना की अफीम बताते हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री झूठे सपने परोसकर दशकों से आम देशवासियों को मूर्ख बना रही है, उसी तरह क्रिकेट इंडस्ट्री युवा ऊर्जा को एक ज्यादा वक्त बरबाद करने वाले खेल की तरफ मोड़ रही है। वे सवाल करते हैं कि क्रिकेट के कीर्तिमानों से इस गरीब देश को आखिर हासिल क्या हो रहा है?मैं इन सवालों को अति प्रतिक्रिया मानता हूं क्योंकि वे एक रोचक खेल के रूप में क्रिकेट की खूबसूरती को नजरदांज करते हैं। लेकिन क्रिकेट मेनिया का मैं भी विरोधी हूं। क्रिकेट पहनने, क्रिकेट खाने और क्रिकेट पीने की वकालत करने वाले विज्ञापन मुझसे सहन नहीं होते। मैं यह भी मानता हूं कि पिछले कुछ बरस से हम बहुत-बहुत ज्यादा क्रिकेट खेल रहे हैं।पर कुछ दूसरे सवाल मुझे कचोटते हैं। क्या सचिन या आमिर को भगवान बताने वाले लोग नॉर्मन बोरलॉग का नाम जानते हैं जिन्होंने हरित क्रांति की नींव रखने वाले बीजों को विकसित किया था? उस वैज्ञानिक को जानते हैं जिसने मोबाइल तकनीक को आगे बढ़ाया और एक रिक्शेवाले तक को अत्याधुनिक संचार मशीन उपलब्ध करा दी? उस वैज्ञानिक के बारे में पता है जिसने इंसुलिन का आविष्कार किया और करोड़ों लोगों को मौत के मुंह से बचा लिया? वे चिकित्सा विज्ञानी जिन्होंने असाध्य रोगों के उपचार खोजे? भले ही ये वैज्ञानिक नास्तिक रहे हों लेकिन क्या उन्होंने मानवता की सबसे बड़ी सेवा नहीं की? और उन्हें भगवान कहना तो दूर, उनका नाम तक हम नहीं जानते! ! . . . और कहानियां सुनाने वालों को, करतब दिखाने वालों को और आंकड़ों की किताब भरने वालों को हम भगवान बता रहे हैं? तो क्या गिनीज बुक में जगह पाने वाले हर आदमी को भी भगवान घोषित कर दिया जाए?जरा सोचिए कि क्या वजह है कि किसी को भगवान बनाए जाने पर उनके सबसे करीबी, सबसे प्रिय लोग ही डर जाते हैं? याद है ना जब धोनी के मंदिर बनने लगे तो कैसे उनके परिवारवालों ने धोनी की ऐसी भक्ति का सार्वजनिक तौर पर विरोध किया था?मुझे लगता है कि लोकप्रिय लोगों को ईश्वर बताएंगे तो कई और दिक्कतें खड़ी हो जाएंगी। चार दिन पहले भाई लोगों ने आमिर को भगवान बताया था। फिर दो दिन पहले शाहरुख को भगवान बताया था। आज पता चलेगा कि दो दिन पहले वाले भगवान, चार दिन पहले वाले भगवान को छिछोरा कह रहे हैं। गाली बक रहे हैं। खबर आएगी कि चार दिन पहले भगवान घोषित हस्ती ने अपने कुत्ते का नाम दो दिन पहले भगवान घोषित हस्ती के नाम पर रख दिया है। इस तरह सारी दुनिया एक सद्यघोषित भगवान और पूर्व घोषित भगवान के बीच गाली गलौज का नजारा देखेगी। बॉलीवुड के भगवानों के बीच ऐसी जूतमपैजार तो अक्सर होती रहती है। आइए फिर सचिन पर चर्चा करते हैंं। सचिन एक खिलाड़ी के रूप में शानदार हैं। लेकिन जिस तरह क्रिकेट जीवन नहीं है, उसी तरह सचिन सिर्फ खिलाड़ी भर नहीं हैं। वे एक गृहस्थ भी हैं। उन्हें भगवान घोषित करके हम उनके लिए मुश्किलें ही बढ़ा रहे हैं। अगला एक विज्ञापनी झूठ बोलने के पांच करोड़ लेता है। कल को बेचारा कोई नया कांट्रेक्ट साइन करेगा तो उसकी अपनी ही आत्मा कचोटेगी। पांच करोड़ लेकर भक्तों को पेप्सी या कोक पीने की गलत सलाह देने चले हो भगवान? फिर दूसरे वर्गो के 'भगवानÓ जीने नहीं देंगे। योग प्रेमियों के भगवान बाबा रामदेव जान खा जाएंगे। पर्यावरण प्रेमियों की देवी सुनीता नारायण रौद्र रूप में आ जाएंगी। मुंबईकरों के भगवान ठाकरे तो जब-तब क्रिकेट के भगवानों की खबर लेते ही रहते हैं। दिक्कत और भी कई आएंगी। कल खबर छपेगी कि क्रिकेट के भगवान जीरो पर आउट हो गए। दूसरी खबर आएगी कि भगवान को मोच आ गई। तीसरी खबर आएगी कि भगवान का पेट खराब था। डाइनिंग टेबल के पास गिर गए। ये सब घटनाएं इंसानों के साथ होती हैं तो ही शोभा देती हैं। भगवान के साथ ये सब होगा तो सोचिए, अच्छा लगेगा क्या?सचिन को इंसान ही रहने दो भाई। ख्वामखाह बच्चे की मुसीबतें न बढ़ाओ। इस मुल्क में जिन्होंने खुद को भगवान घोषित कर दिया था, वे ही कौन सुख से रह पाए? जिनके आसपास भगवाधारी फिरंगियों की मंडली कीर्तन करती थी, वे ही कौन आराम से जी पाए।

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