भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी के दरबार में हाजिरी न लगाने के लिए चर्चित रहे गुजरात के निजाम नरेन्द्र मोदी का कद कम नहीं हुआ है। आज भी वे उतने ही ताकतवर हैं, जितने कि पहले हुआ करते थे, या यह कहा जाए कि मोदी का कद बढ़ा है, अतिश्योक्ति नहीं होगा। गडकरी द्वारा आश्चर्य जनक रूप से आडवाणी की जगह अब मोदी को प्रधानमंत्री पद का असली दावेदार बताकर सभी को चौंका दिया है। एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में गडकरी ने यह कहकर थमे पानी में कंकर मार दिया है कि भले ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का फैसला संसदीय बोर्ड करेगा पर उनकी नजर में मोदी ही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। जानकारों का कहना है कि मोदी की प्रशंसा कर गडकरी ने एक तीर से अनेक शिकार कर डाले हैं। सबसे पहले तो वे उमर दराज आडवाणी को किनारे करना चाह रहे हैं, फिर राहुल गांधी की काट युवा को आगे लाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनके कार्यकाल में कम से कम एक बार तो केन्द्र में भाजपा सत्तारूढ़ हो जाए। कुछ लोगों का कहना है कि मोदी ने गडकरी को अन्दर ही अन्दर इतना पस्त कर दिया है कि अब गडकरी बिना मोदी एक कदम भी चलने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। भले ही सुषमा स्वराज मोदी को पीछे कर शिवराज सिंह चौहान को आगे बढ़ाना चाह रहीं हों पर मोदी इस सब पर भारी पड़ते ही दिख रहे हैं।नरेंद्र मोदी ने राजनीति का अपना करियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के तौर पर शुरू किया। 1987 में वह बीजेपी में शामिल हुए और एक ही साल में गुजरात शाखा के महासचिव बन गए। 1995 में जब बीजेपी दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आई तो मोदी को पार्टी का राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी गई। केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली यह सरकार कुछ ही समय चली और शंकरसिंह वाघेला के बीजेपी से अलग हो जाने से सरकार गिर गई। 1998 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी फिर से सत्ता में आई। मगर केशुभाई का राज जनता को रास नहीं आया और उसका नतीज़ा 2001 के उपचुनावों में पार्टी की हार के रूप में सामने आया। तब सरकार और पार्टी को उबारने के लिए मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया। अगले ही साल फरवरी में गोधरा स्टेशन पर हिंदू तीर्थयात्रियों से लदी एक ट्रेन में आग लगने (बनर्जी कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक) या लगाने (नानावटी कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक) की घटना के बाद भीषण मुस्लिम विरोधी दंगे भड़के जिसे मोदी सरकार का खुला समर्थन मिला। मोदी हिंदुओं के नायक के तौर पर उभरे और राज्य धर्म के आधार पर बंट गया। इस समर्थन का फल मोदी को 2002 और 2007 के चुनावों में मिला। गोधरा का कुकृत्य न सिर्फ मोदी के लिए बल्कि भारतीय राजनीति के लिए एक कलंक बना रहेगा। गुजरात में गोधरा के दंगों में जो कुछ हुआ देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। मगर हकीकत यह है कि मोदी ने उस कालचक्र को ही आगे बढ़ा दिया। मोदी को गोधरा दंगों के बाद देश का सबसे सांप्रदायिक राजनीतिज्ञ करार दिया गया मगर यह हैरान कर देने वाली बात है कि धर्मनिरपेक्षता की मसीहा कांग्रेस पर भी 1984 में वह दंगे कराने का आरोप है जिसमें 3500 सिख मारे गए थे। जबकि गुजरात के दंगे में इससे तीन गुना कम लोग मारे गए थे। सांप्रदायिकता की किसी व्याख्या से परे हकीकत में यह माना जाता है कि भारतीय राजनीति में मोदी से बेहतर प्रशासक कोई नहीं है। जिसकी वजह सरकारी तामझाम से अलग मोदी अपने घर पर उसी तरह लोगों से मुलाकात करते हैं। वह भी उसी तरह जैसे खुद मोदी अपने घर में दिखते हैं। मोदी का घर और रहन-सहन हतप्रभ कर देने वाला है। जिसे मायावती और गांधी के झंडाबरदारों को भी मोदी से सीखना चाहिए।यह मोदी का वह आभामंडल है जिसमें गुजरात का विकास और राज्य के लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने की दृढ़ता दिखाई दे रही है। सच भी है। आज सिंगापुर में गुजरात का दूध बिकता है। अफगानी खाते हैं गुजराती टमाटर। कनाडा में भरा पड़ा है गुजरात का पैदा किया हुआ आलू। यह सब विकास की हार्दिक कामना व कोशिश के बिना संभव नहीं। मोदी ने संभव कर दिखाया है। इतना ही नहीं साबरमती के तट पर एक ऐसा औद्योगिक शहर बनाया जाना प्रस्तावित है जिसे देखकर दुबई और हांगकांग को भी झेंप महसूस होगी। वह मोदी ही हैं जिसने सभी नदियों को आपस में जोड़ा जिसके कारण अब साबरमती नदी सूखती नहीं। यह सब बिल्कुल उस तरह है जो उनकी पार्टी के किसी भी नेता से मोदी को बिल्कुल अलग रखती है।
गुरुवार, मार्च 25, 2010
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