देश का एक वर्ग आरक्षण जैसे मुद्दे पर अपनी विपरीत राय रखता है तो दूसरा गरीब और पिछड़ों के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए आरक्षण को मुद्दा बना कर मेहनतकशों को बेकाम और नकारा बनाने पर तुला हुआ है। एक सीमा तक आरक्षण जायज माना जा सकता है लेकिन आरक्षण के परिणाम जो सामने निकलकर क्या आ रहे हैं उससे देश की दशा और दिशा भी प्रभावित हुई है। यह जानते हुए भी कतिपय स्वार्थी तत्व देश के लाखों करोड़ों लोगों को दूसरे का मोहताज बनाकर अपनी दाल रोटी सेंकने में लगे हैं। फिर सुप्रीम कोर्ट जैसी न्यायिक संस्थाएं भी कहां पीछे रहने वाली हैं। पूंजीवाद के इस असमान युग में आम आदमी की लड़ाई न तो हिन्दू और न मुसलमान से है और न ही सवर्णो की पिछड़े और दलितों से। देश का एक बड़ा वर्ग दो जून की रोटी तलाशने में ही अपना पूरा श्रम लगा देता है फिर उसके पास लडऩे का समय कहां है। उसका आक्रोश भी व्यवस्था को लेकर है। वह भी मात्र अमीर और गरीब के भेद को पाटने की। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि कोई रोटी के अभाव में दम तोड़ देता है तो रसूखदारों के घरों में पल रहा कुत्ता इसलिए कुछ नहीं खा रहा है कि उनकी आदत ताजी ब्रेड और बिस्किट खाने की लगा दी गई है। यह बात कहने में कतई संकोच नहीं कि देश का गरीब तबका मंहगाई के इस युग में और गरीब होता जा रहा है वहीं दुनिया की तमाम पूंजी चंद अमीरों की बपौती बनती जा रही है। इस असमानता को दूर करने के प्रयासों के बजाय इंसान को धर्म, जाति और समुदाय विशेष के दायरे में बांध कर आरक्षण दिए जाने की बात की जा रही है और उसे ही जायज ठहराया जा रहा है। लेकिन यह उस मत का सरासर बहिष्कार है जिसमें समानता का अब दावा किया जा रहा था। इस गंभीर विषय पर न तो हमारी सरकारें ध्यान दे रही हैं और नही सर्वोच्चय न्यायिक संस्थाएं इस गंभीर विषय पर दखलंदाजी कर रही हैं। जनभावनाओं की टोह लिए बिना आरक्षण देने की बात की जा रही। और तो और मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों के आरक्षण के बारे में अंतरिम आदेश देकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आंध्रप्रदेश सरकार के महत्वपूर्ण कदम उठाने के फैसले पर मंजूरी की मुहर लगा दी है। एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून को बहाल किया है जिसे आन्ध्र प्रदेश सरकार ने इस उद्देश्य से बनाया था कि सरकारी नौकरियों में पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण दिया जा सकेगा। हलांकि हाई कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया था। लेकिन निचली अदालत के फैसले को गलत बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसे कानूनी शक्ल दे दी है। मामला संविधान बेंच को भेज दिया गया है जहां इस बात की भी पक्की जांच हो जायेगी कि आन्ध्र प्रदेश सरकार का कानून विधिसम्मत है कि नहीं। संविधान बेंच से पास हो जाने के बाद मुस्लिम आरक्षण के सवाल पर कोई वैधानिक अड़चन नहीं रह जायेगी। फिर राज्य और केंद्र सरकारों को सामाजिक न्याय की दिशा में जरूरी कदम उठाने के लिए केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरुरत समझी जा रही है। जो बहुत बड़ी बात नहीं पर इसके बाद न्यायालयों का डर नहीं रह जाएगा क्योंकि एक बार सुप्रीम कोर्ट की नजर से गुजर जाने के बाद किसी भी कानून को निचली अदालतें खारिज नहीं कर सकतीं।इस फैसले से मुसलमानों के इन्साफ के लिए संघर्ष कर रही जमातों को ताकत मिल जायेगी। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए कुछ सीटें रिजर्व करने का कानून बनाने की दिशा में पहल की है। बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में मुसलमानों को 10 प्रतिशत रिज़र्वेशन देने की पेशकश की थी। उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। इस फैसले के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपने फैसले को लागू करने के लिए ताकत मिलेगी। इसके पहले भी केरल, बिहार, कर्नाटक और तमिलनाडु में पिछड़े मुसलमानों को रिजर्वेशन की सुविधा उपलब्ध है। आरएसएस की मानसिकता वाले बहुत सारे लोग यह कहते मिल जायेंगें कि संविधान में धार्मिक आरक्षण की बात को मना किया गया है। यह बात सिरे से ही खारिज कर देनी चाहिए। संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। केरल में 1936 से ही मुसलमानों को नौकरियों में आरक्षण दे दिया गया था। उन दिनों इसे ट्रावन्कोर-कोचीन राज्य कहा जाता था। बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने भी ओ बी सी आरक्षण की व्यवस्था की थी जिसमें पिछड़े मुसलमानों को भी लाभ दिया जाता था। दरअसल बिहार में ओ बी सी रिजर्वेशन में मुसलमानों के पिछड़े वर्ग की जातियों का बाकायदा नाम रहता था।आंध्र प्रदेश में मुसलमानों के आरक्षण के विषय पर जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अदालत में पेश हुआ तो अटार्नी जनरल गुलाम वाह्नावती और सीनियर एडवोकेट के पराशरण ने यह तर्क दिया कि जब हिन्दू पिछड़ी जातियों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध है तो मुसलमानों को वह सुविधा न देकर सरकारें धार्मिक आधार पर पक्षपात कर रही हैं। अदालत ने भी आरक्षण का विरोध करने वालों से पूछा कि सरकार के कानून बनाने के अधिकार को निजी पसंद या नापसंद के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस अंतरिम आदेश के बाद केंद्र की यूपीए सरकार पर भी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का दबाव बढ़ जाएगा।
बुधवार, मार्च 31, 2010
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आरक्षण मेरे ख्याल से हमारे देश के लिए एक बीमारी है जो देश को कमजोर बना रहा है . मै आरक्षण का नहीं इसके तरीका का विरोध कर रहा हू|
जवाब देंहटाएंआज ६० सालो से यह हमारे देश में लागु है और कितना दिन यह चलाना चाहिए ! अगर और ज्यादा दिन रहा तो इसका उल्टा प्रभाव होगा और आज जो सामान्य कोटे में आने वाले कुछ साल बाद पिछड़ी कोटे वाले हो जायेंगे और यह सिलसिला चलता रहेगा. आरक्षण को सिर्फ शिक्षा तक ही सिमित रखना चाहिए | नौकरियों में लोगो को अपनी योग्यता के अनुसार अवसर मिलाना चाहिए | हम आरक्षण के बल पे किसी को एक अच्छा डॉक्टर या इंजिनियर नहीं बना सकते, हा उस कबित बाबाने के लिए पूरा आरक्षण मिलना चाहिए शिक्षा में और सभी गरीबो को मिलाना चाहिए ,
मायावती को आरक्षण कि क्या जरुरत है , क्या उनसे गरीब इस देश में नहीं है जो सामान्य कोटे में आता है ??