माइन, माइनिंग और मनी के खेल में हजारों करोड़ रुपये के वारे-न्यारे करने वालों में केवल मधुकोड़ा ही शामिल नहीं है बल्कि इसमें दिल्ली में बैठे कई अधिकारी और राजनेता भी शामिल हैं। माइनिंग में चल रहे घोटाले सिर्फ राज्य सरकारें नहीं बल्कि केंद्र सरकार में बैठे आला लोगों की सरपरस्ती में भी चल रहे हैं। जांच के बाद अधिकारियों को सनसनी खेज जानकारी मिली है कि माइनिंग प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने वाले अधिकारी खुद माइनिंग कंपनियों से जुड़े हैं। ये वही अधिकारी हैं जो माइनिंग कंपनियों को लाइसेंस देने के लिए हरी झंडी देते हैं। खास बात ये कि एक अधिकारी ने सिर्फ 6 महीने में 400 से ज्यादा माइनिंग प्रोजेक्टस को मंजूरी दे दी। रिटायर्ड वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम.एल. मजूमदार हाल तक केंद्र सरकार की माइनिंग के लिए बनी एक्सपर्ट अपरेसल कमेटी के चेयरमैन थे। इनका काम था माइनिंग के लिए जितने भी आवेदन आएं उनके पर्यावरण पर पडऩे वाले असरए वहां रहने वाले लोगों पर पडऩे वाले असर की जांच करें और अपनी रिपोर्ट सरकार को दें। इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सरकार माइनिंग की लीज देती है। लेकिन आप ये जानकर दंग रह जाएंगे कि मजूमदार साहब खुद 4 माइनिंग कंपनियों में डायरेक्टर हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार को इस बात की जानकारी नहीं है। लेकिन शायद सरकार का मानना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। गोवा की एक माइनिंग कंपनी का विवाद दिल्ली हाई कोर्ट में पहुंचने के बाद एक झटके में चार सौ माइनिंग लीज की कहानी सामने आ गई। दक्षिण गोवा के एक छोटे से गांव के आसपास की करीब 90 हैक्टेयर जमीन लीज पर एक कंपनी को देने का फैसला किया। सरकार से इस फैसले से पहले मजूमदार की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी इस प्रपोजल को मंजूरी दे दी थी। किसानों का आरोप था कि कमेटी ने उनके विरोध को पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के वकील रितविक दत्ता के मुताबिक माइनिंग की मंजूरी देने से पहले पब्लिक हियरिंग होना बहुत जरूरी है। लेकिन इस मामले में स्थानीय लोगों के सौ फीसदी विरोध के बावजूद मंजूरी दे दी गई।उधर झारखंड के खनन सचिव रहे जयशंकर तिवारी ने मधु कोड़ा मामले की जांच कर रही इनकम टैक्स विभाग के सामने देशभर में चल रहे माइनिंग के पूरे खेल से पर्दा उठा दिया है। कहा जा रहा है कि झारखंड में कोड़ा बंधु माइनिंग कंपनियों से प्रति टन दस रुपये लेते थे। एक मिडिल साइज माइन से 100 मीलियन टन की खनन होती है। यानी सिर्फ एक ही खान से कोड़ा बंधु सौ करोड़ रुपये कमाते थे।द ग्रेट झारखंड राबरी के दो अहम चेहरे मधु कोड़ा, विनोद सिन्हा। एक जेल में दूसरा फरार। झारखंड के खनन सचिव रहे जयशंकर तिवारी ने मधु कोड़ा एंड कंपनी की काली कमाई की परत दर परत खोल दी है। झारखंड के खनन सचिव के मुताबिक मधु कोड़ा की तरफ से सारे सौदे विनोद सिन्हा ही करता था। माइनिंग का ठेका उसी कंपनी को मिलता था जो रिश्वत की शर्त पूरा करता। ये शर्त इतनी कड़ी थी कि देश की कई बड़ी खनन कंपनियों ने लीज लेने तक से मना कर दिया। जी हां, माइन, माइनिंग और मनी का ये खेल इसी तरह होता था। खनन सचिव जयशंकर तिवारी ने बताया है कि माइनिंग कंपनियों को लीज पर आखिरी मुहर मधु कोड़ा की ही लगती थी। लेकिन जयशंकर की मानें तो इस मुहर के लिए भी कंपनियों को दो शर्त पूरी करनी जरूरी थी। रिश्वत के तौर पर दस रुपये प्रति टन अदा करने होते थे। गौरतलब कि एक मिडिल साइज की खदान में करीब सौ मिलियन टन खनन होता है। इस हिसाब से खनन का ठेका दिलाने वाले 100 करोड़ रुपए बतौर रिश्वत लेते थे। पहली शर्त पूरा करने के बाद बारी थी दूसरी शर्त की। खदान कंपनियों से प्रति हेक्टेयर दो लाख रुपए वसूले जाते थे। यानी घूस की रकम इस बात पर तय होती थी कि खदान कितनी बड़ी है और उसमें से कितना खनन हो रहा है। कोड़ा एंड कंपनी को इसी हिसाब से रिश्वत दी जाती थी। रिश्वत की ये रकम तो थी लीगल माइनिंग के लिए इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गैरकानूनी ढंग से माइनिंग के लिए कितनी बड़ी रकम अदा करनी पड़ती होगी। जयशंकर तिवारी की मानें तो रिश्वत की सारी रकम दिल्ली, मुंबई या विदेश में दी जाती है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि माइन माफिया लॉबी कितनी मजबूत है। गौरतलब है कि खदान का ठेका देने के लिए सबसे पहले राज्य सरकार अप्रूब्ड माइन कंपनियों की लिस्ट केंद्र सरकार के पास भेजती है। इसके बाद केंद्र सरकार कंपनियों की लिस्ट की जांच कर वापस राज्य सरकार के पास भेज देती है। फिर तय होता कि किस कंपनी को कितनी जमीन दी जाए। झारखंड के खनन सचिव की मानें तो इस पूरी प्रक्रिया में माइन माफिया दोनों ही बार पैसा कमाते हैं। मधु कोड़ा के समय भी ऐसा ही होता था। जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने मधु कोड़ा मामले की जांच में तेजी लाइ तो माइन, माइनिंग और मनी के इस खेल की हर कड़ी जुडऩे लगी। कई बड़े नाम सामने आने लगे मगर तभी डिपार्टमेंट के अधिकारी उज्जवल चौधरी का तबादला हो गया। इनकम टैक्स विभाग के कई अधिकारी इससे नाराज हैं। उनका मानना है कि चौधरी का तबादला माइन माफियाओं के दवाब में ही किया गया। इसे लेकर आयकर विभाग में आजकल ई-मेल अभियान भी चल रहा है। इस मेल के मुताबिक मधुकोड़ा मामले की जांच कर रहे अधिकारी उज्जवल चौधरी का तबादला एक साजिश का हिस्सा है। साजिश इस मामले में फंस रहे बड़े लोगों को बचाने की।
गुरुवार, मार्च 25, 2010
माइन, माइनिंग और मनी का खेल
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आप के पोस्ट से कुछ जानकारी मिली...
जवाब देंहटाएंचूँकि कोल इंडिया में हूँ...तो सरकारी मुद्दे पर कमेन्ट नहीं कर सकता....
हाँ.....मैं अपने ब्लॉग का एक लिंक भेज रहा हूँ......
विषय से हटकर है....लेकिन कोल इंडस्ट्री से सम्बंधित है....
अन्य पाठक भी मेरी कमेन्ट न करने की मजबूरी समझेंगे.......
मेरा पोस्ट आप लोग भी देख सकते है...यानि अन्य पाठक गण......
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/02/blog-post_28.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....