मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की दूसरी पाली की कमान सम्भालने के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना मध्यप्रदेश बनाने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का मुद्दा अपनी प्राथमिकताओं में बताया था। लेकिन एक वर्ष से अधिक समय निकलने के बाद भी यह मुद्दा आम जनता में मुद्दा ही बना रहा लेकिन सरकार इसे भूल गई। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जागरूक आम जनता की शिकायत पर आयकर विभाग, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जद में फंसे कई मंत्रियों और अधिकारियों पर मात्र इसलिये कार्रवाई नहीं कर पा रहा है कि इन भ्रष्टाचारियों की शिकायत से संबंधित फाईलों में कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री इजाजत नहीं दे रहे हैं। इसके पीछे प्रदेश के मुखिया की क्या लाचारी है यह तो वहीं जाने पर प्रदेश में इस बात की चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं या भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। प्रदेश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि आज छोट-मोटे कामों के लिए उसे रिश्वत देनी पड़ती है। सरकारी दफ्तरों में यह रिश्वत उस काम के लिए ली जाती है जो बिल्कुल वैधानिक और जायज है। फिर गलत और अवैधानिक कामों के लिए ली जाने वाली रिश्वत का अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश में मंत्री से लेकर संतरी तक सभी भ्रष्टाचार के गंदे कुंड में आकंठ डूबे हुए हैं। यह हम नहीं कहते बल्कि विभिन्न जांच एजेंसियों में लंबित पड़े मामले यह साबित करते हैं। आलम यह है कि अफसर भगवान और संत महात्माओं को दी जाने वाल सुविधाओं के नाम पर मिलने वाले पैसे को भी चट कर जाते हैं। इस तरह के एक मामले में जिला पंचायत ग्वालियर के मुख्यकार्यपालन अधिकारी विनोद शर्मा को लोकायुक्त ने आरोपी मानते हुए जांच शुरू की है। दर्ज प्रकरण के मुताबिक श्री शर्मा ने उज्जैन नगर निगम में आयुक्त रहते हुए वर्ष 2004 में आयोजित सिंहस्थ मेले में अपने निकटतम ठेकेदार अशोक जैन को अनाधिकृत लाभ पहुंचाने के लिए दोगुने से भी ज्यादा रेट काम करा भुगतान किया। दस्तावेज बताते हैं कि निविदा हासिल करने में अशोक जैन के प्रतिद्वंदी विमल चंद्र जैन ने प्रथम लोएस्ट रहते हुए मेला स्थल में डायबोर के लिए 119 रूपए प्रतिहोल तथा फसी बिछाने के लिए 153 रूपए वर्ग मीटर की दर से काम करना स्वीकार किया था लेकिन विनोद शर्मा ने यह काम जनबूझकर अशोक जैन को दोगुने रेट डायबोर के लिए 252 रूपए प्रतिहोल तथा फर्सी बिछाने के लिए 269 रूपए प्रतिवर्ग मीटर में काम दिया। बताया जाता है कि राजनैतिक सांठगांठ के चलते उज्जैन नगर निगम में इस अधिकारी नियुक्ति एक आयएएसअधिकारी को आनन-फानन में हटाकर की गई थी। प्रदेश के प्रमुख भ्रष्टअफसरों में गिने जाने वाले विनोद शर्मा पर इंदौर में एसडीएम रहते हुए भ्रष्टाचार में संलिप्त रहने के आरोप भी है। इन दागी मंत्रियों और अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति न देने के पीछे यह बताया जाता है कि मुख्यमंत्री समेत उनके कई मंत्री भी लोकायुक्त की चपेट में हैं। जिसके चलते वह भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने इस मामले में सत्र के दौरान विधानसभाध्यक्ष से आधे घंटे की विशेष चर्चा कराने का अनुरोध किया था। लेकिन कोई प्रतिफल सामने नहीं आया। सिंघार की इस जानकारी के अनुसार लोकायुक्त में शिवराजसिंह चौहान के खिलाफ दो केस दर्ज हैं। मंत्री अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, जयंत मलैया, अजय विश्नोई, राजेंद्र शुक्ल, पूर्व मंत्रियों में हिम्मत कोठारी, कमल पटेल, ढालसिंह बिसेन, अखंडप्रताप सिंह आदि पर विभिन्न मामलों में केस दर्ज हैं।इनके अलावा दो दर्जन आईएएस अफसरों और चार आईपीएस अफसरों समेत कई अफसरों के खिलाफ भी लोकायुक्त में केस दर्ज हैं। इनमें आयकर छापे की जद में आए निलंबित आईएएस अधिकारी अरविंद जोशी, निलंबित स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एमए खान,प्रमुख सचिव देवराज बिरदी, पीडी मीणा, सत्यप्रकाश, राघव चंद्रा, संभागायुक्त पुखराज मारू आदि के खिलाफ भी विभिन्न मामलों में प्रकरण दर्ज हैं। श्री सिंघार ने जनवरी 2004 से अब तक लोकायुक्त द्वारा दर्ज प्रकरणों और उन पर हुई कार्रवाई के संबंध में प्रश्न पूछा था। प्रश्नोत्तर सूची में जानकारी एकत्र करने की बात कही गई थी। विधानसभा सचिवालय ने श्री सिंघार को बताया कि जानकारी देरी से आने के कारण प्रश्नोत्तर सूची प्रकाशित नहीं हो सकी। श्री सिंघार ने इन लोगों के खिलाफ लोकायुक्त को न्यायालय में चार्जशीट फाइल करने की स्वीकृति देने की मांग की है। वह कहते हैं कि लोकायुक्त को चार्जशीट फाइल करने के लिए शासन की स्वीकृति लेने की शर्त हटाई जाना चाहिए। मंत्रियों के बाद आइए बात करते हैं मप्र के उन अफसरों के बारे में जिनके जिम्मे पूरा प्रदेश है। लेकिन यह जानकर किसी को भी आश्र्चय होगा कि मप्र के लगभग 25 आईएएस अधिकारियों की जांच मप्र आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो कर रहा है। वैसे इस संस्था से किसी आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाही की उम्मीद कम ही है। अभी तक यह संस्था राजनेताओं के हथियार के रुप में प्रयोग में लाई जाती है। क्योंकि इसकी जांच पर हमेशा ही उंगली उठती रही है। हालांकि मध्यप्रदेश लोकायुक्त संगठन ने 1 जनवरी 2004 के बाद अभी तक 17 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। यह अभी तक कि सबसे बड़ी संख्या है। इस तरह मध्यप्रदेश लोकायुक्त वर्तमान में प्रदेश के लगभग 36 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है।
शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010
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