शनिवार, अप्रैल 10, 2010

बुजुर्गो की पगड़ी रौंद कर बनाएंगे भोपाल को सिंगापुर..?

पंकज शुक्ला
ध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जहां अपने नैर्सिगक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है वहीं यह पुरातत्व कालीन इमारतों के लिए भी जानी जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश शासन के एक निर्णय ने यहां के लोगों को झकझोंर कर रख दिया है। समृद्ध विरासत की गौरव को याद दिलाने वाली कई इमारतों को सिर्फ इस लिए तोडऩे के निर्देश जारी कर दिए गए कि वह इमारते पुरात्व विभाग की लिस्ट में नहीं संरक्षित घोषित नहीं है। झीलों की नगरी की पहचान बने लगभग 200 साल पुराने महल और तोमर कालीन दरवाजों को संरक्षित करने के बजाय महज इसलिए तोडऩे का निर्णय लिया गया है कि यह लोगों के आवागमन के साथ ही पार्किग सुविधा में रोड़ा बने हैं। सरकार के इस निर्णय के बाद इस बात की बहस तेज हो गई है कि मध्यप्रदेश सरकार राजा भोज की मूर्ति लगाने की कवायद कर जहां इतिहास रचने की तैयारी में है वहीं वह इन पुरातत्व महत्व की इमारतों को तोड़कर इतिहास मिटाने की तैयारी जुटी हुई है। जिसके चलते शहर के लोगों को वो दिन एक बार फिर याद आ गया, जब तालिबानियों द्वारा बामियान में स्थित गौतम बुद्ध की दो सबसे प्राचीन प्रतिमाओं को ध्वस्त किया गया था। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा गौतम बुद्ध की इतनी प्राचीन प्रतिमाओं को बचाने के लिए गुहार लगाई गई थी, लेकिन तालिबानी प्रशासन पर इसकी जूं तक नहीं रेंगी, कुछ ऐसा ही मंजर भोपाल में होने जा रहा है, जहां सब संगठन और लोग धरोहरों को बचाने के लिए आवाज उठा रहे हैं और प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। लगभग 10 साल पहले तालिबानी सरकार द्वारा बामियान में स्थित बुद्ध की दो सबसे प्राचीन प्रतिमाओं को तोड़ा गया था। लगभग 2000 साल पुरानी इन प्रतिमाओं की लंबाई 50 मीटर (165 फीट) और 34.5 मीटर (114 फीट) थी। इन प्राचीन धरोहरों को बचाने के लिए अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका, ईरान, पाकिस्तान, रूस, भारत और यूएन सेकेट्री कोफी अन्नान ने तालिबान से अपील की थी, लेकिन इस अपील को तालिबानी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ था और तोप के गोलों से इन दोनों मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। सरकारी विभागों से जुड़े लोग हालांकि प्रदेश सरकार के इस फैसले पर कुछ भी बोलने से कन्नी काट रहे हैं, लेकिन आमजन की बात की जाए, तो लोगों का यही कहना है कि लगता भोपाल में भी तालिबानी शासन आ गया है, जहां धरोहरों को बचाने के लिए ठोस कदम या सार्थक पहल करने के बजाय, इन्हें ध्वस्त किया जा रहा है। प्रदेश के नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर की इस घोषणा के बाद कि राजधानी भोपाल में जीर्ण-शीर्ण हो चुके पुराने भवनों को धराशायी कर वहां पार्किग बनाएं, के बाद राजधानी का प्रबुद्ध वर्ग खासा गुस्से में है। प्रबुद्धजनों का कहना है कि ऐसे तो भोपाल की पहचान ही मिट जाएगी, क्योंकि जिन इमारतों को गौर साहब ने खण्डहर बताकर जमींदोज करने की ठान ली है। उन इमारतों की नींव में इतिहास दबा हुआ है। भोपाल के नवाबी काल के महत्वपूर्ण पदचिंहों को मिटाए जाने के विरोध में स्वर तेज होते जा रहे हैं। अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि जो सरकारी रजिस्टर में धरोहर लिस्ट में शामिल नहीं तो क्या उन्हें जमींदोज कर दिया जाएगा। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिविंग हेरीटेज अलाएंस की सविता राजे कहती हैं कि यह बिल्डिंग्स वीरान पड़ी इमारतें नहीं बल्कि लिविंग हेरीटेज हैं। इनका बाकायदा इस्तेमाल किया जा रहा है। इनके बारे में नकारात्मक भाव से कोई सोच भी कैसे सकता है। इन भवनों को गिराना भोपाली इतिहास के महत्वपूर्ण पद चिंहों को मिटाना होगा। जुमेराती गेट तो अपने काल की वास्तुकला का इकलौता उदाहरण बचा है। हम इस फैसले का हर प्लेटफार्म से विरोध करेंगे। वहीं नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर तर्क दे रहे हैं कि जो लोग जुमेराती गेट, पोस्ट आफिस और शीश महल को धरोहर मानकर इसे गिराने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह पता होना चाहिए कि यह सभी इमारतें राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार की संरक्षित धरोहर लिस्ट में सम्मिलित नहीं हैं। भोपाल हैरिटेज सोसायटी के सचिव सिकंदर मलिक ने बताया कि जुमेराती
गेट भोपाल के पुराने 7 दरवाजों में एक मात्र दरवाजा है जो 1720 में बनाया गया था। इसकी मरम्मत के लिए 2 साल पहले पैसा भी मंजूर हुआ था किन्तु राजनैतिक दबाव के चलते काम नहीं हुआ। अपनी हालत का खुद अहसास नहीं मुझको, मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूं मैं.. बेशक पोस्ट ऑफिस में बना पोस्ट मास्टर का घर आज कुछ ऐसी ही लाइनें बार-बार दोहरा रहा होगा, जब उसे गिराया गया। जुमेराती गेट, शीश महल और पोस्ट ऑफिस ही नहीं बल्कि शहर में कम से कम 30 इमारतें ऐसी हैं, जो धरोहर और पुरातत्व विभाग के संरक्षित करने के मापदण्ड पर बिलकुल खरी उतरती हैं। लेकिन, फिर भी उन्हें विभाग का संरक्षण प्राप्त नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह संरक्षण न प्राप्त होने के कारण आज पोस्ट ऑफिस को तोडऩे की शुरुआत कर दी गई, क्या उसी तर्ज पर डेवलपमेंट के नाम पर शहर की दूसरी इमारतों को भी यूं ही गिरा दिया जाएगा। वह भी तब जब 100 साल की उम्र की इमारतों को संरक्षित करने के प्रावधान है। इसके बावजूद करीब 250 साल पुराना जुमेराती गेट, 150 साल पुराना शीश महल और इसी के समकक्ष 150 साल पुराना पोस्ट ऑफिस अभी तक विभाग द्वारा संरक्षण में नहीं लिया गया है। यह एक गंभीर सवाल है कि धरोहरों के जीर्णोद्धार के काम में जुटी प्रदेश सरकार इन पुरातात्विक महत्व की इमारतों को तोडऩे की बात आखिर कैसे कर सकती है? शायद नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर को भोपाल की संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें शायद अपने बुजुर्गो की पगड़ी को रौंदने का सपना दिखाई देने लगा है, वह भोपाल को पेरिस और सिंगापुर बनाने में यह भूल गए हैं कि यह भारत है और उसमें भी यह भोपाल है, जिसे भारत का दिल कहा जाता है।

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