पंकज शुक्ला
शाहरूख खांन की नई फिल्म माई नेम इज खान आखिरकार रिलीज हो गई। फिल्म देखकर निकले लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी, थर्ड क्लास फिल्म है। मूड़ ऑफ हो गया। इन युवाओं में फिल्म को लेकर तब और उत्सुकता बन गई कि इसका विरोध शिवसेना और उसके मुखिया बालासाहब ठाकरे पुरजोर तरीके से कर रहे हैं। फिल्म में जरूर कुछ खास होगा है। लेकिन यह कुछ लोगों को ही पता होगा कि आज कल फिल्म की लागत निकालने के लिए तरह-तरह के तरीके इजाद किए जाते हैं। शाहरूख के नाम पर शिवसेना ने जंग ह्हेद कर शाहरूख की फिल्म के लिए जहां दर्शक बटोरे वहीं मराठा प्रेम दिखाते हुए देश के हिन्दुओं का रहनुमा बनने का प्रयास भी किया। देश में शिवसेना ने मराठा प्रेम के नाम पर जो लड़ाई छेड़ी हुई है उसने इन दिनों देश प्रेम का रुख अख्तियार कर लिया है। कभी महाराष्ट्र में बजाओ पुंगी हटाओ लुंगी का नारा देने वाले बालासाहेब ठाकरे आज जबरदस्त देशभक्ति का प्रदर्शन करते हुये सड़कों पर उतर आये हैं और उन्हें शाहरुख खान के पाकिस्तानी खिलाडिय़ों के आईपीएल में चयन को लेकर दिये गये बयान में देशद्रोह जैसा कुछ नजर आता है। बालासाहेब ने इसे देश प्रेम से जोड़ा है और कहा है कि पाकिस्तानी खिालाडिय़ों से मोहब्बत जताने वालों को वे कभी माफ नहीं करेंगे। लेकिन क्या वे इस बात का जवाब दे पायेंगे कि कुछ दिनों पूर्व उन्होंने सचिन तेन्दुलकर को भी इस बात के लिये धमकाया था कि उन्होंने खुद को पहले भारतीय क्यों कहा। क्या वे इस बात का जवाब देंगे कि वे उत्तर भारतीयों से घृणा क्यों करते हैं, वह खुद इस बात की दुविधा में हैं कि वे मराठियों की बात करते हैं, या भारतीयों की या फिर हिन्दू हितों की। उनकी इस घृणास्पद राजनीति ने देश में इस बात की लड़ाई तेज कर दी है कि आखिर भारत पर पहला हक हिन्दुओं का है या मुसलमानों का। आजादी के तिरसठ साल बाद भी इस बात को जि़न्दा रखने का श्रेय ऐसे ही राजनीतिज्ञों को जाता है जिन्होंने क्षेत्र, भाषा, जाति के नाम पर देश को बांटने में कोई कसर नहीं रखी। इस बात से सबसे गलत सन्देश यह गया कि देश ने लोगों को हिन्दू और मुसलमान के नाम पर विभक्त कर दिया। हां, यह बात सही है कि पाकिस्तान जैसे राष्ट्रद्रोही देश का नाम सुनते ही किसी के भी तन मन में आग लग जाती हो लेकिन शाहरुख ने ऐसा बयान नहीं दिया था जिससे राष्ट्रप्रेम पर आंच आये।
कुल मिलाकर मराठा प्रेम और हिन्दू हितों की लड़ाई लडऩे वाली शिवसेना ने इस पूरे मुद्दे को अपनी अस्मिता से जोड़ लिया और माय नेम इज खान की रिलीज के दिन जबरदस्त ड्रामा देखने को मिला। शिवसेना के इस प्रकरण ने देश को फिर से उस दर्द की याद दिला दी जिसने हमें देश विभाजन का दर्द दिया। आखिर ऐसा क्यों होता है कि देश में आतंकी हमला होते ही खुफिया एजेंसियों की सुईयां लश्कर, हुजी और पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों की ओर घूम जाती है और इसमें कोपभाजन बनना पड़ता है हमारे देश के उन देशभक्त मुसलमानों को जिन्हें बार-बार इस बात का सर्टीफिकेट देना पड़ता है कि वे भारतीय हैं या भारत से प्रेम करते हैं। आजादी के इतने दशक बाद भी इस स्थिति के लिये हमारे राजनेता जिम्मेदार हैं जिन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच जहर घोलकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी जारी रखी। आखिर ऐसा क्यों हुआ, क्यों कोई इस देश में हिन्दुओं से इस बात का प्रमाण नहीं मांगता कि तुम देशभक्त हो या नहीं। करोड़ों रुपये का घोटाला करने वालों से कोई इस बात का जवाब क्यों नहीं मांगता कि तुम देशभक्त हो या नहीं, देश में 1984 दंगे कराने वालों से कोई इस बात का जवाब नहीं मांगता कि आप देशभक्ति का प्रमाण दो।
इस देश के विभाजन का विरोध मुसलमानों ने भी किया था और जिन लोगों को देश विभाजन की जल्दी थी वे भी धर्म से हिन्दू ही थे। ऐसे में क्यों बार-बार मुसलमानों को न्यायिक कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि आप अपनी देशभक्ति का सबूत दो। क्यों साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित जैसे लोगों से इस बात का जवाब नहीं मांगा जाता है कि तुम हिन्दू राष्ट्र बनाने के नाम पर देश में दंगों को अंजाम देने की योजना बना रहे थे? क्यों नरेन्द्र मोदी जैसे लोगों से इस बात का जवाब नहीं मांगा जाता कि गोधरा दंगों में निर्दोष मुसलमानों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? हां गलत लोग सभी जगह हो सकते हैं लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि आप देश के सारे मुसलमानों पर शक करें। क्या देश को इतनी तरक्की दिलाने में मुसलमानों का कम अहम रोल है, क्या देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र नहीं बनाया आखिर इसके बाद भी हम क्यों मुसलमानों से इस बात का जवाब मांगते हैं कि तुम देशभक्ति हो या नहीं। इस पूरी स्थिति के लिये देश के भ्रष्ट नेता जिम्मेदार हैं।
बात हो रही थी बाल ठाकरे की, राहुल गांधी पर गलत बयानों को लेकर पहले भी बाल ठाकरे मीडिया की सुर्खियों में जगह पा चुके हैं। लेकिन माय नेम इज खान को लेकर जो हुआ वह वास्तव में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था क्योंकि ऐसे देश में जहां की 78 प्रतिशत जनता 20 रुपये से कम में गुजारा करती हो वहां पर भाषा, क्षेत्र, जाति, धर्म, रंग के नाम पर किसी के साथ किसी भी तरह का उत्पीडऩ घोर पाप है। जिसका दंश हम पिछले बीस सालों से पूर्वोत्तर में झेलते आ रहे हैं जहां पर आज भी हिन्दी भाषियों की हत्या की खबरें समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही हैं। न जाने क्यों राष्ट्र से ऊपर महाराष्ट्र को रखकर राजनीति की जा रही है। क्यों देश में क्षेत्रवाद को हवा दी जा रही है। हम क्षेत्रवाद का दंश वैसे ही पंजाब के काले दिनों के रूप में देख चुके हैं आज भी पंजाब में हवाला के पैसों से नवयुवकों को भटकाया जा रहा है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। पिछले कुछ समय से विशेषकर तब से जब से शिवसेना ने दो विधानसभा चुनाव हारे हैं उसका मराठा प्रेम हिलोरें मार रहा है। अगर यही सन्देश सारे देश में जायेगा तो हो गया बस बन गये हम महाशक्ति, बन गये इकोनोमिक सुपरपावर।
महाराष्ट्र में तुम परप्रान्तीयों को मारोगे और मराठी दूसरे राज्यों में लोगों के गुस्से का शिकार बनेंगे। ऐसे में विकसित देश का सपना देखना कहीं बेमानी तो नहीं होगी, ऐसे में देश की युवा पीढ़ी क्षेत्रवाद के दंश का शिकार तो नहीं बन जायेगी। इसके लिये बड़े-बड़े धार्मिक आयोजनों की बजाय संवाद कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये जिससे लोगों में प्रेम बढ़े और क्षेत्रवाद का जहर न फैल सके। राष्ट्र से ऊपर महाराष्ट्र बनाने की जो लड़ाई शिवसेना ने छेड़ रखी है उससे एक गलत सन्देश लोगों के बीच जा रहा है साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी युवाओं को इस बात के लिये उकसाया जा रहा है कि वे भी इसी तरह की लड़ाई लड़ें। चन्द वोटों के लालच में हम अगर भारत की अस्मिता से खेल सकते हैं तो हमें हिन्दू हितों की रक्षा का कोरा नारा देना बन्द करना होगा। भारत विभिन्न भाषाओं, धर्मों, जातियों के लोगों का समागम है इसलिये इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी कीमत पर भारत की एकता, अखण्डता को खण्डित न होने दें क्योंकि इससे देश में आपसी मनमुटाव व वैमनस्य तो बढ़ेगा ही साथ में विदेशों में भी भारत की नकारात्मक छवि बनेगी जिससे सीधा नुकसान देश की तरक्की का होगा और हम विकास की दौड़ में पिछड़ जायेंगे।
कुल मिलाकर मराठा प्रेम और हिन्दू हितों की लड़ाई लडऩे वाली शिवसेना ने इस पूरे मुद्दे को अपनी अस्मिता से जोड़ लिया और माय नेम इज खान की रिलीज के दिन जबरदस्त ड्रामा देखने को मिला। शिवसेना के इस प्रकरण ने देश को फिर से उस दर्द की याद दिला दी जिसने हमें देश विभाजन का दर्द दिया। आखिर ऐसा क्यों होता है कि देश में आतंकी हमला होते ही खुफिया एजेंसियों की सुईयां लश्कर, हुजी और पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों की ओर घूम जाती है और इसमें कोपभाजन बनना पड़ता है हमारे देश के उन देशभक्त मुसलमानों को जिन्हें बार-बार इस बात का सर्टीफिकेट देना पड़ता है कि वे भारतीय हैं या भारत से प्रेम करते हैं। आजादी के इतने दशक बाद भी इस स्थिति के लिये हमारे राजनेता जिम्मेदार हैं जिन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच जहर घोलकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी जारी रखी। आखिर ऐसा क्यों हुआ, क्यों कोई इस देश में हिन्दुओं से इस बात का प्रमाण नहीं मांगता कि तुम देशभक्त हो या नहीं। करोड़ों रुपये का घोटाला करने वालों से कोई इस बात का जवाब क्यों नहीं मांगता कि तुम देशभक्त हो या नहीं, देश में 1984 दंगे कराने वालों से कोई इस बात का जवाब नहीं मांगता कि आप देशभक्ति का प्रमाण दो।
इस देश के विभाजन का विरोध मुसलमानों ने भी किया था और जिन लोगों को देश विभाजन की जल्दी थी वे भी धर्म से हिन्दू ही थे। ऐसे में क्यों बार-बार मुसलमानों को न्यायिक कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि आप अपनी देशभक्ति का सबूत दो। क्यों साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित जैसे लोगों से इस बात का जवाब नहीं मांगा जाता है कि तुम हिन्दू राष्ट्र बनाने के नाम पर देश में दंगों को अंजाम देने की योजना बना रहे थे? क्यों नरेन्द्र मोदी जैसे लोगों से इस बात का जवाब नहीं मांगा जाता कि गोधरा दंगों में निर्दोष मुसलमानों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? हां गलत लोग सभी जगह हो सकते हैं लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि आप देश के सारे मुसलमानों पर शक करें। क्या देश को इतनी तरक्की दिलाने में मुसलमानों का कम अहम रोल है, क्या देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र नहीं बनाया आखिर इसके बाद भी हम क्यों मुसलमानों से इस बात का जवाब मांगते हैं कि तुम देशभक्ति हो या नहीं। इस पूरी स्थिति के लिये देश के भ्रष्ट नेता जिम्मेदार हैं।
बात हो रही थी बाल ठाकरे की, राहुल गांधी पर गलत बयानों को लेकर पहले भी बाल ठाकरे मीडिया की सुर्खियों में जगह पा चुके हैं। लेकिन माय नेम इज खान को लेकर जो हुआ वह वास्तव में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था क्योंकि ऐसे देश में जहां की 78 प्रतिशत जनता 20 रुपये से कम में गुजारा करती हो वहां पर भाषा, क्षेत्र, जाति, धर्म, रंग के नाम पर किसी के साथ किसी भी तरह का उत्पीडऩ घोर पाप है। जिसका दंश हम पिछले बीस सालों से पूर्वोत्तर में झेलते आ रहे हैं जहां पर आज भी हिन्दी भाषियों की हत्या की खबरें समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही हैं। न जाने क्यों राष्ट्र से ऊपर महाराष्ट्र को रखकर राजनीति की जा रही है। क्यों देश में क्षेत्रवाद को हवा दी जा रही है। हम क्षेत्रवाद का दंश वैसे ही पंजाब के काले दिनों के रूप में देख चुके हैं आज भी पंजाब में हवाला के पैसों से नवयुवकों को भटकाया जा रहा है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। पिछले कुछ समय से विशेषकर तब से जब से शिवसेना ने दो विधानसभा चुनाव हारे हैं उसका मराठा प्रेम हिलोरें मार रहा है। अगर यही सन्देश सारे देश में जायेगा तो हो गया बस बन गये हम महाशक्ति, बन गये इकोनोमिक सुपरपावर।
महाराष्ट्र में तुम परप्रान्तीयों को मारोगे और मराठी दूसरे राज्यों में लोगों के गुस्से का शिकार बनेंगे। ऐसे में विकसित देश का सपना देखना कहीं बेमानी तो नहीं होगी, ऐसे में देश की युवा पीढ़ी क्षेत्रवाद के दंश का शिकार तो नहीं बन जायेगी। इसके लिये बड़े-बड़े धार्मिक आयोजनों की बजाय संवाद कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये जिससे लोगों में प्रेम बढ़े और क्षेत्रवाद का जहर न फैल सके। राष्ट्र से ऊपर महाराष्ट्र बनाने की जो लड़ाई शिवसेना ने छेड़ रखी है उससे एक गलत सन्देश लोगों के बीच जा रहा है साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी युवाओं को इस बात के लिये उकसाया जा रहा है कि वे भी इसी तरह की लड़ाई लड़ें। चन्द वोटों के लालच में हम अगर भारत की अस्मिता से खेल सकते हैं तो हमें हिन्दू हितों की रक्षा का कोरा नारा देना बन्द करना होगा। भारत विभिन्न भाषाओं, धर्मों, जातियों के लोगों का समागम है इसलिये इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी कीमत पर भारत की एकता, अखण्डता को खण्डित न होने दें क्योंकि इससे देश में आपसी मनमुटाव व वैमनस्य तो बढ़ेगा ही साथ में विदेशों में भी भारत की नकारात्मक छवि बनेगी जिससे सीधा नुकसान देश की तरक्की का होगा और हम विकास की दौड़ में पिछड़ जायेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें